विकसित देशों में खासकर अमेरिका में विकास का नेक अप, नेक डाउन का फार्मूला बेहद प्रचलित एवं लोकप्रिय है। वहाँ के प्रत्येक नागरिक इस पर अमल भी करते हैं। हमारे भारत में भी जाने—अनजाने में यह फार्मूला विकसित एवं संभ्रात परिवारों में खूब प्रयोग में लाया जाता है, लेकिन अविकसित देश हो या परिवार आज भी इससे अंजान है या इसपर अमल नहीं करते। कोई भी इस फार्मूले पर अमल करे तो निश्चय ही उसका उत्तरोत्तर विकास होता रहेगा नेक अप, नेक डाउन (Neck up, neck down) फार्मूला का मतलब है, गर्दन से उपर और गर्दन से नीचे कितना खर्च करते हैं, इसपर आपका एवं आपके परिवार का पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास निर्भर करता है। इसे विस्तार से समझें, हम जो भोजन करते हैं, पेट में जाता है, जो गर्दन के नीचे है। ज्यादातर कपड़े गर्दन के नीचे ही पहना जाता है। गर्दन के उपरवाले हिस्से में खर्च एक ही जगह किया जा सकता है, वह है दिमाग। जिस प्रकार पेट को भोजन चाहिए, उसी प्रकार दिमाग को भी भोजन चाहिए। हमलोग कोशिश करते हैं कि पेट को प्रतिदिन अच्छा से अच्छा भोजन दिया जाये, ताकि शरीर तंदुरूस्त रहे। दिमाग को भी भोजन प्रतिदिन चाहिए, इसपर तो कभी सोचते ही नहीं, लेकिन सच तो यह है कि दिमाग को भी प्रतिदिन भोजन चाहिए और अच्छा भोजन चाहिए। दिमाग का भोजन ज्ञान है। दिमाग भी भूखा नहीं रह सकता है। अगर हम भोजन नहीं भी दें तो भी वह कहीं न कहीं से भोजन का इंतजाम कर लेगा, लेकिन वह भोजन अच्छा होगा इसकी गारंटी नहीं है। अच्छी चीजें कभी भी मुफ्त में नहीं मिला करती। अगर हम दिमाग को भोजन के रूप में सिर्फ नकारात्मक बातें, अभद्र व्यवहार, उत्तेजक बातें, फिल्में या कथा साहित्य देंगे तो दिमाग तंदुरूस्त कहाँ से रहेगा। पेट के लिए छप्पन भोग और दिमाग के लिए गाली—गलौज, तो विकास कहाँ हो सकेगा?
जो दिमाग के अच्छे भोजन पर जितना खर्च करेगा, उसका विकास उतनी तेजी से होगा। कुछ लोग भीख मांगकर भी बच्चों को पढ़ाते हैं तो कुछ बच्चों से भीख मंगवाकर खाते हैं । विकास किसका होगा? आपलोग स्वयं निर्णय कर सकते हैं। अविकसित परिवार ज्ञान अर्थात शिक्षा पर या तो खर्च करते ही नहीं या कम से कम खर्च करते हैं। यह अलग बात है हमारे यहाँ प्राथमिक शिक्षा मुफ्त है, लेकिन उसके बाद तो हिसाब करना पड़ता है। लोग प्राय: यह सोचते हैं कि जब खूब पैसा होगा तो शिक्षा पर खर्च करूँगा, तबतक कुछ संपत्ति बना लें, भविष्य में काम आयेगा। शिक्षित एवं विकसित लोग ज्ञान को संपत्ति एवं संपत्ति बनाने का जरिया मानते हैं तो अशिक्षित, अल्पशिक्षित या शिक्षित सह अविकसित जमीन—जायदाद, रूपये—पैसा, सोना—चाँदी इत्यादि को संपत्ति मानते हैं। यहाँ ध्यान दें शिक्षित होना, ज्ञानवान होने की निशानी नहीं है। एक शिक्षित व्यक्ति भी अज्ञानी हो सकता है और एक अशिक्षित व्यक्ति भी ज्ञानी। ज्ञान शिक्षण और प्रशिक्षण दोनों तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है। इसीलिए बहुत कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी करोड़पति हैं और करोड़ों ग्रेजुएट खाकपति हैं। शिक्षा पाना मंजिल है तो ज्ञान प्राप्त करना एक ऐसी प्रक्रिया है जो सतत चलती रहती है। मरते दम तक ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिए, और अमीर लोग यही करते भी हैं। मेरा मतलब है ज्ञान सिर्फ बच्चों और युवाओं को प्राप्त करना जरूरी नहीं हैं, बल्कि हरेक उम्र के व्यक्ति को अच्छे साहित्य या सज्जन के संपर्क में रहकर लगातार ज्ञान प्राप्त करते रहना चाहिए, अगर वे अपनी एवं परिवार की तरक्की चाहते हैं। जिस प्रकार हमलोग अच्छे भोजन पर प्रतिदिन खर्च करते हैं उसी प्रकार अपने आय का कुछ अंश प्रत्येक महीना कम से कम एक अच्छे साहित्य को खरीदने एवं उसे प्रतिदिन 10—20 मिनट पढ़ने में करे तो निश्चय ही हम तरक्की करेंगे। पूजा—पाठ के बदले अगर रोज ज्ञान—पाठ किया जाये तो परिवार खुशहाल हो सकता है।
आज के कुछ युवावर्ग स्कूल,कॉलेज के बाद किसी प्रतियोगी परीक्षा के तैयारी किये बिना सरकारी नौकरी की आस लगाये बैठे रहते हैं और किसी असफल या अल्पशिक्षित लोगों के चक्कर में फँसकर देश, सत्ता या अन्य समाज पर दोषारोपण करने में अपने बेशकीमती उर्जा का दुरूपयोग करते हैं। परिणाम सबके सामने हैं। याद रखें सफल लोगों से मिलने के लिए और असफल लोगों से न मिलने के लिए कुछ खर्च भी हो जाये तो चिंता करने की कोई बात नहीं है। आप मंजिल तय करें। संकल्प करें। फिर प्रयास करें। संघर्ष करें। मंजिल पाने तक डटे रहें। सबसे बड़ी बात अपने दिमाग को रोज पर्याप्त मात्रा में भोजन दें। नकारात्मकता से बिल्कुल दूर रहें। अपना, अपने परिवार का, अपने समाज का भविष्य उज्ज्वल करे। मैं आपलोगों से यही अपेक्षा करूँगा।