संपन्नता एवं सहृदयता के बीच उचित सामंजस्य दैवतुल्य मानव में ही देखा जा सकता है। इस व्यवसायिक युग में निरंतर धन और धर्म में हमेशा द्वंदयुद्ध चल रहा है। जिसमें धन लगातार धर्म को मात दे रहा है। धर्म जो पराजित हो रहा है वह क्या है? हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई इत्यादि धर्म नहीं बल्कि मानव धर्म का पालन करने का एक रास्ता है। आखिर मानव धर्म क्या है? वास्तव में मानव धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि मानवीय सदगुण एवं सदप्रवृत्तियों का पालन करना ही मानव धर्म है। प्रेम, दया, सहिष्णुता, करूणा जहाँ मानवीय गुण्य माने जा सकते हैं, वहाँ असमर्थ, निर्बल, लाचार, बृद्धों, महिलाओं, अपंगों रोगियों का सेवा करना, सहायता करना एक दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना, चरित्र एवं विचार उच्च रखना इत्यादि को मानवीय प्रवृत्ति।
मंदिर, मस्जिद गुरूद्वारें, चर्च में लूट—खसोट,बेईमानी के लाखों रूपये दान करने से धर्म का पालन कदापि नहीं हो सकता। मंदिर—मस्जिद के निर्माताओं या दानकर्ताओं को अड़ोस—पड़ोस के दो चार गाँव या शहरवासी जानते हैं, लेकिन विचारवान व्यक्तियों की चर्चा हजारों कोस दूर तक होती है। महात्मा गाँधी को कौन नहीं जानते हैं? विवादस्पद रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद के वास्तविक निर्माता या हजारों मंदिर, मस्जिद बने हैं, उनके निर्माताओं को कौन जानते हैं? महात्मा गाँधी अमर हैं, हिन्दू धर्म के अनुयायी के कारण नहीं बल्कि मानव धर्म के अनुयायी के कारण। देश—विदेश में उन्हें दैव तुल्य सम्मान दिया जा रहा है। अपनी जीवनशैली एवं विचार के कारण। सादा जीवन जीने के कारण जहाँ वे महात्मा, नंगा फकीर कहलाये वहीं उच्च विचार से शोषित वर्ग से लेकर शासक वर्ग को भी प्रभावित किये। समाजसेवियों के लिए वे प्रेरणास्त्रोत हैं। अत: समाजसेवी बंधुओं के लिए लिए आवश्यक है कि सादगीपूर्ण जिंदगी एवं उच्च विचार से समाज के विचारधारा को बदलें। निश्चय ही इससे समाज का कल्याण होगा।
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