बहुत बड़े विद्वान, महात्मा, तपस्वी, राजनेता, शासक, व्यापारी या किसी क्षेत्र के असाधरण हस्तियों के सफलता का राज क्या है? आखिर भीड़ में कैसे वह सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेता है? अपने समान कार्यकत्ताओं को छोड़कर वह कैसे आगे निकल जाता है? दौड़ में अनेक प्रतियोगी भाग लेते हैं, लेकिन अव्वल जो आता है, उसमें क्या विशिष्टता रहती है? इन सब सबालों का एक ही जबाव है— परिश्रम। परिश्रम ही वह पालिश है जो किसी अंधकारमय जीवन को उज्ज्वल बना देता है। परिश्रम के अलावा कोई चारा नहीं है लेकिन संघर्ष भी जीवन और सफलता का एक अंग है। श्रम, संघर्ष और सफलता में चोली दामन का रिश्ता है।
गुलाव का फूल कितना सुंदर होता है, पर वह कांटों के बीच रहता है। कांटों के बीच रहना उसके आकर्षण का करण नहीं बल्कि संघर्ष करते रहने का एक उदाहरण हैं। हम कांटों के बिना गुलाब की अपेक्षा नहीं कर सकते। उसी तरह संघर्ष के बिना सफलता की अपेक्षा करना हास्यास्पद होगी।
इतिहास गवाह है जो जाति परिश्रम एवं संघर्ष किये शासक बने जो समाज संघर्ष से घबराते रहे वे शोषित बने रहे। राजा—महाराजाओं को उम्रभर संघर्ष यानि युद्ध कर सामना करना पड़ता था। उनका सिंहासन सोना—चांदी और हीरे—जवाहरात से भरे जरूर होते थे पर उनकी जिंदगी हमेशा तलवार के धार पर लटकी रहती थी । प्राकृतिक जीव—जंतु, पेड़—पौधों भी संघर्ष के अभाव में अपने को अधिक दिन जिंदा नहीं रख पाते हैं। जीवन को अमर बनाने के लिए महानता हासिल करना जरूरी है। महानता हासिल करने के लिए परिश्रम एवं संघर्ष करना अनिवार्य है। इसीलिए तो जीवन को एक संघर्ष कहा गया है।