यह सच है कि आर्थिक उन्नति मनुष्य के तन, मन और आत्मा को संतुष्ट करने के लिए अति आवश्यक है। धनाभाव के कारण इनका विकास असंभव है, लेकिन आजकल लोगों के मन का निर्देशन इस प्रकार किया जा रहा है कि वे तन, मन और आत्मा के बीच संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं। जीवन में प्रगति का आँकलन सिर्फ प्रचुर धन से किया जा रहा है। फलत: धन के प्रचुरता के बावजूद लाखों—करोड़ों लोग अधूरी जिंदगी जी रहे हैं। अधिकांश धनवान आज बिमार एवं विकृत तन, मन और आत्मा के साथ जी रहे हैं। वे तमाम साध्य—असाध्य रोगों जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग इत्यादि के साथ खुशी—खुशी जी रहे हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि यह लाइफ स्टाइल डिजीज अमीरों को तो होते ही हैं। मजे की बात तो यह है कि ऐसा दुष्प्रचार किया गया है कि ये असाध्य रोग हैं यानि इससे मुक्त होना संभव नहीं हैं। जीवन भर इसको नियंत्रित करने वाली दवाईयों का सेवन करना पड़ेगा। चुँकि किसी भी व्यक्ति का जीवनकाल कितना है यानि कौन कितने दिन, महीने या वर्ष जिंदा रहेगा, इसका अंदाजा लगाना असंभव है, इसलिए अगर कोई इन लाईफ स्टाईल डिजीज से ग्रस्त व्यक्ति की असामयिक मौत हो जाती है तो भी मौत का कारण इस रोग एवं इसके बचाव में लिये जा रहे दवाईयों को नहीं माना जाता है। जबकि सच यह होता है कि उनके मौत का कारण ये रोग एवं इसके बचाव में लिये जा रहे दवाईयाँ ही होती है। जरा सोचिये, प्रचुर धन अगर असामयिक मौत का कारण हो तो वह धन किस काम का? उपाय तो ऐसा होना चाहिए कि धनवान व्यक्ति ज्यादा जिये और यह संभव भी है।
धन का उपयोग मन और आत्मा को विकसित एवं परिष्कृत नहीं करने के कारण भी समाज एवं देश में तरह—तरह की विसंगतियाँ एवं भ्रष्टाचार फैला है। संपत्तियों के लिए भाई—भाई का न्यायालयों में मुकदमा चल रहे हैं एवं सार्वजनिक संपत्तियों एवं धन का गबन बड़ी शान से कर रहे हैं। इस सब के पीछे कारण सिर्फ एक ही है— धन का संबंध तन, मन और आत्मा के बीच मधुर एवं मजबूत नहीं होना। जब तक प्रगति या विकास की व्याख्या एवं लक्ष्य सही—सही नहीं होगी, लोग इस भ्रमजाल में फँसे रहेगें। धन पूर्ण जीवन जीने का माध्यम था। धन आनंदमय जीवन का माध्यम था। धन मधुरतम यानि साधुतम जीन जीने का माधम था। अभी नहीं है, क्योंकि हम मान चुके हैं कि धन के प्रभाव से स्वास्थ्य, संबंध और आत्मा की पवित्रता में ह्रास होना स्वाभाविक है। ऐसा हमें अपने अग्रजनों से, गुरूजनों से, धर्माचार्यो एवं निति उपदेशकों से लगातार विश्वास दिलाये जाने के कारण हुआ है। जरा सोचें जब हम धनाभाव में स्वस्थ रह सकते हैं तो प्रचुर धन होने पर स्वस्थ क्यों नहीं रह सकते? धनाभाव में दो भाई साथ—साथ जीवन यापन कर सकते हैं तो दो धनवान भाई साथ—साथ क्यों नहीं रह सकते? अगर एक साधारण व्यक्ति इमानदार हो सकते हैं तो अमीर व्यक्ति इमानदार क्यों नहीं हो सकते? जब आप किसी बीमार व्यक्ति से मिलने जाते हैं तो शिष्टाचारवश फल लेकर जाते हैं, और जब किसी स्वस्थ व्यक्ति से मिलने जाते हैं तो मिठाई लेकर जाते हैं। यह साधारण ज्ञान को विज्ञान की कसौटी पर देखने का प्रयास करें। फल खाने से अगर अस्वस्थ व्यक्ति के स्वस्थ होने की संभावना है तो स्वस्थ व्यक्ति उसी फल को खाकर जीवन पर्यन्त स्वस्थ क्यों नहीं रह सकता है।
आदिकाल में मानव फलों और सब्जियों को खाकर जीवन पर्यन्त स्वस्थ रहते थे। ज्यों—ज्यों मानव समाज विकास के नाम पर अपने मूल खाद्य पदार्थों को उनके मूलरूप में न खाकर उसे परिष्कृत कर खाना शुरू किया, उनकी आयु कम होती गई । वे पहले दीर्घायु होकर भी स्वस्थ जीवन जीते थे। आज बहुत कम उम्र से ही रोगग्रस्त हो जाते हैं, और चिकित्सालयों का चक्कर काटते रहते हैं। यहाँ तक कि अब तो अधिकांश शिशुओं का जन्म भी बड़े—बड़े अस्पतालों में ही होते हैं। अस्पताल अब केवल अस्वस्थ व्यक्तियों के उपचार के लिए ही नहीं है, वरण जन्म—मृत्यु अब अस्पतालों में ही हो रही है। तो क्यों आर्थिक प्रगति का वास्तविक अर्थ जीवनभर विभिन्न प्रकार के रोगों को शरीर में धारण करना है। जिसे दिलाशा दिलाने के लिए लाईफस्टाईल डिजीज या अमीरों का रोग का नाम दिया गया है। यह व्यापारतंत्र का खेल है। जिसे आर्थिक उन्नति कर चुके यानि विकसित लोगों के साथ खेला जा रहा है। विकसित लोगों का तन, मन और आत्मा भी विकसित होना चाहिए था, पर समाज के नकारात्मक दृष्टिकोण से यह असंभव हो गया है। अब प्रश्न उठता है कि क्या हम आर्थिक उन्नति में सफलता प्राप्त करने के साथ—साथ तन, मन और आत्मा की भी उन्नति कर सकते हैं? यदि हाँ तो यह कैसे संभव है, और इसके लिए कितना धन और समय का व्यय करना होगा? तो उत्तर है अपने आहार और विचार में मामूली सी परिवर्तन कर हम यह सब बड़ी आसानी से कर सकते हैं, और इसमें ज्यादा धन, समय और श्रम की भी आवश्यकता नहीं है, बल्कि तीनों की बचत ही होगी। तो इसी विषय पर आपलोगों को जानकारियाँ उपलब्ध कराने का मेरा प्रयास रहेगा। आप लोग आर्थिक, शारीरिक, मानसिक और आत्मिक रूप विकसित हो, यही मेरी शुभेच्छा है।