एक से भले दो । पंचतंत्र की कहानी ।
किसी स्थान में ब्रह्मदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था। एक समय जब वह किसी काम से दूसरे गांव जाने लगा तब उसकी मां ने कहा— पुत्र! अकेले क्यों जा रहे हो? कोई दूसरा साथी भी खोज लो। वह बोला— मां! मत डरा, यह रास्ता संकटरहित है। कार्य के कारण अकेला ही जाउंगा। उसके इस निश्चय को समझकर पास की बावड़ी में से एक केकड़े को लाकर मां ने कहा— पुत्र! यदि जा ही रहे हो तो यह केकड़ा तुम्हारा साथी होगा। इसलिए इसको लेकर जाओ। उसने भी मां की बात मानकर दोनों हाथों से उसको ले लिया और कपूर की पुड़िया में डालकर जल्दी से चल दिया। जाते—जाते वह सूर्य की गरमी से घबराकर रास्ते में स्थित किसी पेड़ के नीचे सो गया। उसी समय एक सांप पेड़ की कोटर में से निकलकर उसके पास आया। वह कपूर की सुगंध को स्वभावत: प्यार करने के कारण राहगीर को छोड़ और कपड़े को काटकर अंदर रखी हुई कपूर की पुड़िया को जल्दी—जल्दी खाने लगा, तो पुड़िया में बैठे हुए केकड़े ने उसकी जान ले ली। ब्राह्मण ने जागकर देखा कि पास में काला सांप कपूर की पुड़िया के उपर मरा पड़ा है। केकड़े ने ही इसको मारा है ऐसा सोचकर वह प्रसन्नतापूर्वक बोला अहो! मेरी मां ने सच बात कही थी कि पुरूष को कोई साथी साथ में रखना चाहिये। अकेले कहीं नहीं जाना चाहिये। और क्योंकि मैंने श्रद्धापूर्ण मन से उसकी बात मानी, इसलिए मैं केकड़े की सहायता से सांप द्वारा मरने से बच गया। यह ठीक ही कहा है— विपत्ति आने पर सहायता करने वाले और होते हैं तथा सम्पत्ति के सुख का अनुभव और ही लोग करते हैं।
मंत्र, तीर्थ, ब्राह्मण, देवता, ज्योतिषी, औषधि और गुरू, इनमें जैसी जिसकी भावना रहती है, उसे वैसी ही सफलता प्राप्त होती है। ऐसा कहकर वह ब्राह्मण अपने निश्चित स्थान को चला गया।
सीख— इस कहानी से यही सीख मिलती है कि रास्ते में साथी कायर पुरूष भी हितकारक होता है। जैसे साथी केकड़े ने सांप से उस राहगीर की रक्षा की थी।