पुराने जमाने में जब विश्व के अन्य देशों में मॉडर्न मेडिसीन भी नहीं था तो हमारे पास अल्ट्रा मॉडर्न मेडिसिन था। इसीलिए तो हमलोग विश्वगुरू थे। अब अल्ट्रा मॉडर्न मेडिसिन के चमात्कारिक प्रयोग कहाँ—कहाँ किया गया, यह बताना यहाँ जरूरी नहीं हैं और यह अब किसी से छिपा भी नहीं है। टी वी और सिनेमा के माध्यम से अब बच्चे—बच्चे जान चुके हैं। अगर जरूरी हो इसपर भी हम कभी बाद में विचार करेंगे। फिलहाल हम विचार करेंगे आजकल के बेहद जरूरी मुद्दे पर जो हर भारतीय के लिए जरूरी है। चाहे वह देश में रह रहा हो या अप्रवासी हो। हाँ यहाँ यह बताना बेहद जरूरी हे कि अप्रवासी कौन है? आप व्याकरण और शब्दकोश को भूल जायें। यानि ग्रामर और डिक्शनरी को रखिये बगल में। चलन में जो अर्थ है और यह नियम सम्मत भी है उसे समझिये। अप्रवासी यानि एन आर आइ वह भारतीय नहीं है जो भारत के बाहर विदेशों में प्रवास कर रहें हैं, आपके मलाईदार यानि धनी पड़ोसी भी आपके बगल में रहते हुए भी एन आर आइ हो सकते हैं। अगर विश्वास नहीं होता है तो सदी के महानायक का ही उदाहरण ले लिजिये। वे भारत के जाने—माने एन आर आइ हैं। अच्छा लोग एन आर आइ बनते क्यों हैं? यह जानना भी जरूरी है। एन आर आई बनने के बहुत फायदे हैं। सरकार एन आर आई को अपनी मिट्टी से जोड़े रखने के लिए बहुत सी सुविधाएँ प्रदान करती हैं। खासकर आयकर एवं अन्य करों में। एन आर आई अगर भारत में कोई काम करें तो उन्हें कम टैक्स भरना पड़ता है। उसके बच्चे भारत के स्कूल—कॉलेजों में बिना प्रतियोगिता के एडमिशन ले सकते हैं, पैसों के बल पर। भारत के बड़े—बड़े अभिनेता, खिलाड़ी, उद्योगपति इस सुविधा का लाभ वर्षों से ले रहे हैं। बेशक वे यही रहते हों और तेल भी यहीं बेचते हों। पर टैक्स कम देंगे। आगे से जब मैं भारतीय बोलूँगा तो इसमें एन आर आई भी शामिल होगा।
आपलोग कुछ महीने पहले भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा मिश्रित किया गया रोग—प्रतिरोधक क्षमता यानि इम्युनिटी बढ़ाने वाली काढ़ा के बारे में अवश्य सुना होगा। कुछ लोग सुबह—शाम इसका सेवन भी कर चुक होंगे या कर रहे होंगे। मैंने भी इसका सेवन किया था और कोरोना संक्रमित होने के बाद जब ठीक हुआ तो फिर कर रहा हूँ। खैर मिश्रित शब्द मैं इसलिए प्रयोग कर रहा हूँ कि किचन या घर में मौजूद सामग्री ही इसके घटक हैं। अगर लाभ हो न हो पर हानि की संभावना बेहद कम हैं।
इसी तरह के एक और काढ़े का मिश्रण सरकार के अनुषंगी संस्थाओं/ व्याक्तियों एवं सरकार को समर्थन देने वाले जनता द्वारा किया गया है। जो देशभक्ति के जज्बों को बढ़ाने में शत—प्रतिशत कारगर है जैसा कि दावा किया जा रहा है। मैं पहले बता दूँ मैंने इसवाले काढ़ा का सेवन नहीं किया है न भविष्य में कभी करूँगा। आपलोग स्वविवेक का उपयोग कर इसका सेवन कर सकते हैं।इसके घटकों यानि इंग्रिडियेंट की चर्चा बाद में करूँगा, लेकिन पहले यह बता दूँ कि मैं इसका सेवन करने के लिए क्यों नहीं कह रहा हूँ। जबकि देशभक्ति तो सबमें होनी चाहिए। मैं क्या इस काढ़े का सेवन करने के लिए कोई किसी को नहीं कह रहा है? पर इसके
प्रमोटर आपको इसका सेवन करते हुए देखना जरूर चाहते हैं। यहीं एक पेंच है जिसको मैं थोड़ा विस्तार से उदाहरण के साथ समझाता हूँ। राम, श्याम से अगर प्रत्यक्ष रूप से काढ़ा पीने को कहेगा। तो इस प्रकार कहेगा—श्याम तुम्हें देशभक्ति का काढ़ा पीना होगा। इसके अनेक फायदे हैं। अब श्याम की मर्जी वह काढ़ा पीये या न पीये। वह फायदा लेना चाहे या न चाहे। हाँ, हो सकता है अगर श्याम राम की बात न माने तो राम को गुस्सा आ जाये और वह दोस्ती तोड़ दे, या फिर दोनों में दुश्मनी हो जाये। यह तो हुई सीधी बात। अब थोड़ी टेढ़ी बात में अगर यही वार्तालाप होगी या राम अगर अप्रत्यक्ष रूप से श्याम को देशभक्ति का काढ़ा पीने के लिए कहेगा तो कैसे कहेगा? राम, श्याम से कहेगा कि श्याम तुम्हें अपने अंदर देशभक्ति का जज्बा भरने के लिए यानि एक सच्चा देशभक्त बनने के लिए इस क्षेत्र के माहिर यानि परमज्ञानियों द्वारा तैयार किया गया उत्पाद का निश्चित रूप से और नियमित रूप से न केवल सेवन करना चाहिए बल्कि इसका प्रचार—प्रसार में अपन शत—प्रतिशत योगदान भी देना चाहिए। तुम्हें तभी सच्चा देशभक्त औपचारिकरूप से माना जायेगा अन्यथा तुम्हें देशद्रोही, विधर्मी और पता नहीं किन—किन नामों से पुकारा जायेगा। अगर श्याम समझदार नहीं होगा यानि मंद बुद्धि हुआ, जमाने के हिसाब से तो वह तो समझ भी नहीं सकेगा कि राम देशभक्ति की बात कर रहा है। अगर समझ भी गया तो देशभक्ति के काढ़े के जो साइड इफेक्ट यानि दुष्प्रभाव होता है। उन्हें जानकर वह काढ़ा नहीं पियेगा। वह डरेगा। हो सकता है कि उसक पसीने भी छूटे। लेकिन कोई फायदा नहीं। राम समझ जायेगा कि श्याम बहाना बना रहा है। वह न केवल श्याम को धमकायेगा, बल्कि उसे समाज में जलील भी करेगा कि वह देशद्रोही है। अब शम के पास क्या विकल्प है? वह देशभक्ति का काढ़ा ले लेगा। उत्सुकतावश उसके काढ़ा के घटक के बारे में जानना चाहेगा। वह डिब्बे को हिलाकर जानना चाहेगा, अरे यह क्या ? लगता है कि डिब्बा बिल्कुल खाली है। फिर डब्बे को खोलकर देखता है। सिर्फ काढ़े के घटकों का जिक्र है एवं इसे बनाने का विस्तार से वर्णन है। शुरूआती परिचय में लिखा है कि इस काढ़े का आविष्कार श्री श्री 1008 बाबा रंगीला जी महाराज के द्वारा किया गया है। इस काढ़े का आविष्कार करना इसलिए भी अत्यंत आवश्यक हो गया था क्योंकिं इस प्रकार के पुराने सभी उत्पाद या तो चलन में नहीं है यानि आउटडेटेड हो चुके हैं या फिर वे प्रभावहीन हो चुके हैं। खैर अब इसके घटकों पर थोड़ा नजर दौड़ा ली जाए। मतलब का तो यही है।
इसका पहला घटक है— बेशर्मी: हाँ, मुख्य बात यह है कि जो इस काढ़े की विशेषता भी है । चाहे तो सारे घटकों को मिश्रण एक साथ प्रयोग में लायें या आवश्यकतानुसार एक या एक से अधिक घटकों का सेवन करें । बस सेवन विधि का ध्यान रखें। आपमें उच्चतम दर्जे की बेशर्मी होनी चाहिए।
साथ में दूसरा घटक— बेहायापन भी आपमें होना अति आवश्यक है। इन दोनों घटकों का सेवन हमेशा साथ—साथ में करना चाहिए। वर्णा लाभ के जगह हानि होगी। जैसे अगर आपकी झूठ , चोरी इत्यादि सार्वजनिकरूप से भी पकड़ी जाती है तो आपमें उसे न मानने की क्षमता होनी चाहिए यानि बेहायापन होना अति आवश्यक है। वर्णा आप सच्चे देशभक्त नहीं माने जायेगें बल्कि झूठा, चोर जैस देशद्रोही शब्दों से नवाजे जायेंगे। अत: इन दोनों घटकों का सेवन लगातार करते रहे।
तीसरा घटक जो महत्वपूर्ण भी है वह है— हत्या करने अथवा करवाने की क्षमता। आपमें एक उचचतम कोटि के हत्यारा अथवा हत्या करवाने वाला अथवा हत्या के उकसाने वाला इंसान छिपा होना चाहिए। आपको अजीब लगता है पर जरा सोचिये देशहित में प्राचीनकाल से ही दो चार नहीं बल्कि हजारो, लाखों और करोड़ों हत्याएँ हुई हैं। देशहित में हत्या करने वालों को हत्यारा नहीं बल्कि वीर कहते हैं। अत: एक सच्चे देशभक्त को हत्या करने से डरना नहीं चाहिए। चाहे वह हत्या स्वहित में ही क्यों नहीं करना पड़ें। अगर किसी पर संदेह हो तो पहले उसकी हत्या करनी चाहिए या करवानी चाहिए, फिर बाद में घटक एक यानि बेशर्मी एवं घटक दो यानि बेहायापन की सहायता से अपनी रक्षा करनी चाहिए। कभी—कभी भीड़ को उकसाकर किसी निरीह मनुष्य को अवांछित प्राणी मानकर उसपर निंदनीय कार्य करने का लांछन लगाकर उसे मरवाना भी चाहिए। यह भी देशभक्ति का एक बहुत बढ़िया उदाहण है। देशहित में आपका वीर होना अति आवश्यक है और वीर होने के लिए कुछ लोगों को स्वर्ग भेजना भी जरूरी है । कहा भी गया है क्षमा सौभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो ।
देशभक्ति का चौथा घटक है धार्मिक कट्टरता— अपने आप में यह भावना जगानी चाहिए कि हमसे धर्म नहीं धर्म से हम हैं। अत: धर्म को बचाना ही हमारा धर्म और कर्तव्य है। चूँकि धर्म देश से उपर है इसलिए देशभक्ति के साधकों को धर्म की रक्षा करना अनिवार्य है। अत: आप घटक एक, दो, और तीन का प्रयोग करते हुए धर्म की रक्षा करें, लोगों में धार्मिक वैमन्स्यता फैलाने के हर प्रकार के टूल्स यानि मीडिया का प्रयोग करें। आधुनिक युग में मीडिया ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपनी लक्ष्य साध सकते हैं। धर्म के नाम पर अगर आप दंगे करवाने में सक्षम नहीं हैं तो आप सच्चे देशभक्त नहीं कहलायेंगे क्योकि दंगा ही वह माध्यम हैं जिसके द्वारा विभिन्न धर्मों के खेमों को मजबूत किया जा सकता है। इससे लोग एकजुट ही नहीं होते बल्कि इससे लोग दूसरे अन्य किन्हीं कारणें के लिए एकजुट नहीं हो पाते । सरल शब्दों में कहें तो अगर लोग धर्म के लिए एकजुट होंगे तो वे रोटी, कपड़ा और मकान के लिए भी एकजुट नहीं हो पायेगे।
देशभक्ति के काढ़े का पाँचवाँ घटक है— बेईमानी। पहले जमाने के अनपढ़—गँवार लोग मानते हैं कि ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। पर आज के निष्कर्षों से पता चला हे कि बेईमानी फलदायक नीति है। अगर आप बेईमान हैं तो एक चपरासी से लेकर बड़े—बड़े मंत्री—संतरी आपको सलाम करेंगे। मिलावट करवाना तो धर्मसम्मत होता है। सच तो यह है कि बेईमानों को प्यार मिलता है और ईमानदारों को दुत्कार। लेकिन इन सब बातों से देशभक्ति का कोई लेना—देना नहीं है। पर देश के विकास कार्यों में लगे, अधिकारी—कर्मचारी एवं ठेकेदारों का सर्वे कीजिये। आपको पता चल जायेगा कि देश को आगे ले जाने वाला बेईमान ही है ईमानदार नहीं। तो देश का विकास करने वालों को हम क्या देशभक्त नहीं कहेंगे?
देशभक्ति के काढ़े के छठा घटक है— बलात्कार करने की योग्यता।मैंने पढ़ा है कि एक बाबा अपनी शिष्याओं से बालात्कार के बाद उन्हें यह विश्वास दिलाता था कि बाबा उससे बलात्कार कर उसका जीवन सफल बना दिया। यानि उसपर कृपादृष्टि की । इससे दोनों खुश रहते थे। इसी प्रकार आजकल देशभक्त अबलाओं का बलात्कार करते हैं और बाद में यह साबित कर देते हैं कि वह महिला ही चरित्रहीन थी।ऐसे देशभक्त आजकल बड़ी तेजी से तरक्की करते हैं। बशर्ते उनमें देशभक्ति के अन्य गुण मौजूद हों।
देशभक्ति का सातवाँ घटक है— खाने की क्षमता, पचाने की क्षमता और खिलाकर भगाने की क्षमता। देशभक्त तो वही हैं जो अधिक से अधिक धन इकट्ठाकर देश के विकास में योगदान दें। हाँ, आजकल धन इकट्ठा करने के स्रोतों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आपकी मर्जी आप जैसे धन इकट्ठा करें। स्रोतों पर ध्यान देने पर देश में तरक्की नहीं होती थी। आज देखिये हर दूसरे दिन लोग करोड़पति और हर दूसरे महीने अरबपति बन रहे हैं। स्विटजरलैंड के प्रधानमंत्री आश्चर्यचकित हैं कि भारत के लोगों के पास इतना धन है कि वहाँ के बैंक संभाल नहीं पा रहे हैं। स्विस बैंक फल—फूल रहा है। इस प्रकार पूरी दुनिया में भारत का डंका बज रहा है। और किसी क्षेत्र में भारत सवश्रेष्ठ हो न हो इस क्षेत्र में तो आशातीत सफलता हासिल कर रहा है। यह भी एक प्रकार का देशभक्ति नहीं तो और क्या है? धन इकट्ठा करने की क्षमता से देश में करोड़पतियों—अरपतियों की संख्या बढ़ेगी। दूसरी ओर इकट्ठा किये गये धन को पचाने की क्षमता भी देशभक्तों में होना चाहिए। जैसे नोटबंदी में भी सारे काले को गोरे कर सकें। और तो और अगर कोई ज्यादा खा लिया हो और उल्टी नहीं कर रहा हो तो देशभक्त का यह कर्तव्य है कि उसे बाहर भगा दो। इसमें देशभक्ति इस प्रकार है कि वह तो उल्टी करेगा नहीं और यहाँ रहता तो और खाता। क्योंकि उसकी खाने की आदत जो है। इसलिए उसे भगाकर देश का बहुत सारा धन नुकसान होने से बचा लिया। यह नारा तो तभी फिट बैठती है न खाउँगा, न खाने दूँगा।
ये सातो मुख्य घटक के अलवा भी कई सारे घटकों का अल्प मात्रा में इसमें मिश्रण है। नि:संदेह इस काढ़े का सेवन कर आजकल आप एक पक्का और सच्चा देशभक्त बन सकते हैं। और हाँ, अगर आपको समझ में न आये या कोई आपत्ति हो तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।