हमारे वाले मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्रियों में अव्वल है। पहले मुझे पता था अब विश्वास हो गया। इंजिनियर हैं, राष्ट्रीय स्तर के सबसे कठिन प्रतियोगिता में सफल रहे हैं तो दिमाग तो होगा ही। दिमाग की कमी उसके पास भी नहीं है जो गोबर स्नान कर कोरोना को मात दे दिये। मात दे दिये या मात खाये। इसकी पक्की जानकारी तो सरकार के भी पास नहीं है। हाँ हमारे वाले का दिमाग बड़ा तो है, इसीलिए वे फटाफट आड इवन का आविष्कार कर डाला। इसकी विश्वसनीयता और उपयोगिता को देखते हुए हो सकता है, वे इसे पेटेंट करवाकर और भी नाम बड़ा कर ले। और करें क्योंकि वे इस आड इवन फार्मूला से प्रदूषण जैसे राक्षस से निपट चुके हैं और अब कोरोना जैसी काल से निपटने का बीड़ा उठाये हैं। साथ ही वे इसे प्रदेश में लागु कर राजस्व भी खब कमाये, सरकार के लिए और भविष्य में भी कमायेंगें। और आड इवन से आये राजस्व का उपयोग जनता को मुफ्त में पानी—बिजली, मुफ्त यात्रा, मुफत के और कई चीजें है जैसे अखबार या टी वी पर विज्ञापन दिखाकर और विश्र्वस्तरीय शहर में रहने का अहसास तो दिला ही सकते हैं। भले ही आपके मुहल्ले की गली गीली हो गई हो। गढ़्ढ़े में तब्दील हो चुकी हो पर आप, आप से खुश रहें।
सरकार के राजस्व में इजाफा आड इवन जब गाड़ियों के घर से बाहर निकलने पर लगाया गया था तो कैसे हुआ यह जान लेते हैं। जिसके पास आड या इवन गाड़ी थी और साथ में पैसा भी, वे नई गाड़ी खरीद कर इवन या आड नंबर ब्लैक से लिये। यानि जिसके पास पहले आड नंबर की गाड़ी थी वे इवन और जिसके पास इवन नंबर की गाड़ी थी वे आड नंबर की गाड़ी खरीद लिये। यह सुविधा उस समय उपलब्ध थी इस प्रकार छोटे से कर्मचारी से लेकर बड़े—बड़े व्यापारी एवं उद्योगपतियों को लाभ मिला। केवल एक फार्मूला से प्रदूषण का क्या वह तो आती जाती रहती है। लोग—बाग बताते हैं कि खुद की खांसी तो दक्षिण भारत जाकर ठीक करवाये। इस आड इवन फार्मूले को कोरोना रोकने के लिए इस्तेमाल किये। अच्छा हुआ आड इवन का आविष्कार पहले करके रखे थे। आड नंबर की दुकान एक दिन खुली और इवन नंबर की दुकान दूसरे दिन खुली। इस गणित को तो नॉवेल पुरस्कार मिलना चाहिए। इससे बाजारे में भी भीड़ कम और दुकान में भी भीड़ कम हुई। फर्नीचर मार्केट में अगर आधी दुकान खुली तो भीड़ कम हुई या पुरी दुकान खुली रहती तब भीड़ कम होती ।
कोरोना पोजिटिव के ईलाज के लिए इसके इंतजाम तो जग—जाहिर है। हर समय, हर बार ये बाउंसर फेकते रहते हैं और एंपायर उसे नो बॉल करार कर देते हैं। जनता को तो अंधे में काना राजा से खुश होना ही पड़ता है। मेरा खुद का अनुभव सुनिये, हो सकता है और मेरा विश्वास है कि ऐसा ही हजारों लोगों के साथ हुआ होगा। मेरा कोरोना रिपोर्ट जब पोजिटिव आया तो इसके स्वचालित टेलीफोन नंबरों लगातार फोन आता रहा कि अगला फोन डॉक्टर का आयेगा। मैं बिस्तर बुखार से परेशान था और यह फोन बार—बार मुझे चिढ़ा रही थी। बंद इस लोभ में नहीं किया कि अगला फोन पर डॉक्टर साहब बात करेंगे। पच्चीसों फोन एक दिन में आ चुका, लेकिन डॉक्टर का नहीं। दूसरे दिन सिलसिला चला एड्रेस वेरीफिकेशन यानि पते की जांच की। दिनभर मैं एड्रेस वेरीफिकेशन करवाता रहा। आने—जाने का रास्ता बताता रहा, ताकि किसी को आने में कोई परेशानी नहीं हो। पर महीना गुजर गया लेकिन कोई हमारे घर से नहीं गुजरा। मैं अपनी और परिवार की रक्षा एवं ईलाज ईश्वर की कृपा से अच्छे से कर पाया। इसके लिए ईश्वर को धन्यवाद। मेरा कहना सिर्फ इतना ही है कि अगर सरकार को कुछ करना नहीं था तो वे दो दिन तक फोन के माध्यम से मुझे परेशान क्यों किया? ये मुख्यमंत्री—राज्यपाल खेलकर जनता को गुमराह करते रहते हैं। काम कुछ करना नहीं। भगवान इसका भी भला करेंगे।