दोस्तों कहा गया है कि तरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है। यानि जिस तरह का आपका संपर्क होगा, उसी तरह के आप एक दिन बन जायेंगे। इसमें संदेह नहीं है। अक्सर नकारात्मक या असामाजिक तत्वों के साथ इस नियम के शत—प्रतिशत प्रमाण आप देख सकते हैं। अगर आपकी समझ विश्लेषणात्मक है तो आप समाज के सफल लोगों का सर्वेक्षणकर इसका सही—सही पता लगा सकते हैं। इस संबंध में हिंदी के कई मुहावरे— लोकोक्ति एवं दोहे आप बड़ी आसानी से पढ़ सकते है। जैसे संगत से गुण आत है, संगत से गुण जात। कबीरदास जी का यह दोहा तो काफी प्रसिद्ध है— कबिरा संगति साधु की ज्यों गंधी की बास। जो कुछ गंधी दे नहीं तो भी बास सुबास।। अगर आप अपना जीवन सुधारना चाहते हैं तो आपका पहला एवं अंतिम कार्य यही होना चाहिए कि जैसा आप बनना चाहते हैं। उस तरह के लोगों से दोस्ती कीजिए। हाँ यह जरा अटपटा एवं असंभव सा दिखता है। माना कि मैं अंबानी जैसा बनना चाहता हूँ तो अंबानी से दोस्ती करना तो मेरे लिए असंभव है। तो यह नियम तो गलत हो जायेगा। या गलत है। जरा रूकिये, आज के सूचना युग में किसी से दोस्ती या दुश्मनी करना बहुत आसान है। बिजली के स्विच आन—आफ करने जितना आसान है। पहले भी यह काम आसान ही था लेकिन उसके तरीके अलग थे। बचपन में जब आप किसी से भूत—प्रेतोंवाली कहानियाँ सुनते थे तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होती थी? क्या आप सहज रह पाते थे? क्या आप डरते नहीं थे? क्या आपका शरीर कभी डर के मारे काँपने नहीं लगता था? ऐसा प्रया: सभी बच्चों के साथ होता था। बाद में जब किशोरवय में यही कहानियों को पुस्तक में पढ़ना शुरू किया तो भी वही प्रतिक्रियाएँ शरीर के द्वारा हुई। चलचित्रों में भी अगर ऐसी कहानियाँ होती है तो शरीर जरूर प्रतिक्रिया देती है। इसमें कोई संदेह नहीं है। इसके विपरीत भी उतना ही सच है। चाहे खुशनुमा कहानी किसी के द्वारा सुनाया जाये, स्वयं पुस्तक में पढ़ें या चलचित्र में देखें। हमारा मना खुश हो जाता है। हम तरोताजा हो जाते हैं। मनोरंजन तो इसी का नाम है। हमारा शरीर सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है।मतलब डर हो या खुशी के पल हमारा शरीर प्रतिक्रिया करता है।
पुराने समय में घर के बुजुर्गों द्वारा नौनिहालों को किसी धार्मिक या ऐतिहासिक पात्रों के बारे में बताया जाता था। ताकि बच्चें उससे प्रेरित होकर उन महान पात्रों को अपना आदर्श बनायें एवं उनका अनुशरण करें। आज भी हम अपने आदर्श व्यक्तित्व का नकल करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। हाँ हमारा आदर्श व्यक्तित्व ही गलत हो, काल्पनिक जीवन व्यतीत कर रहा हो तो हम पर तो गलत छाप यानि प्रभाव होगा ही। आज सोशल मीडिया या अन्य सभी मीडिया जो खबरें प्रकाशित या प्रसारित करती हैं, उसका एक प्रतिशत भी अगर सकारात्मक खबरे दिखाती तो मानव की स्थिति आज अवश्य अलग होती। हमारे आदर्श कैसे हो? इसपर चिंतन अवश्य करना होगा। आजकल हम आदर्श ऐसे लोगों को बना रहे हैं जिसके पास सफलता के नाम पर धन के सिवा कुछ भी नहीं है। उसे हम असफल भी नहीं कह सकते हैं। लेकिन वे वास्तविक जीवन नहीं जी रहे हैं। ज्यादातर हमारे युवावर्ग फिल्म स्टार को अपना आदर्श मानते हैं । आदर्श माने या न माने नकल तो उसी का ज्यादा किया जा रहा है। हो सकता है उनमें से कुछ फिल्म स्टार सफल एवं असल जीवन जी रहे हों लेकिन ज्यादातर तो लोगों का नुकसान ही कर रहे हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ उनका कृष्णपक्ष को उजागर करना नहीं हैं। आप भलीभांति अंदाजा लगा सकते हैं कि एक सफल अभिनेत्री बालों को लंबा, घना करने वाला एवं नये बाल उगाने वाला तेल का प्रचार करती है जबकि उसका खुद का पति गंजा है। यह कितनी हास्यास्पद बात है। एक से एक मोटिवेशनल डॉयलॉग बोलने वाला आत्महत्या कर लेता है। पैसे के लिए कुछ भी करने वाला या करने वाली मतलब लोगों को धोखा देने वाला या वाली हमारा आदर्श नहीं होना चाहिए। सिगरेट, शराब एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अन्य उत्पादों का विज्ञापन तो सफल अभिनेता एवं अभिनेत्रियां ही करती हैं। तो इन लोगों को आदर्श बनाने से निश्चय ही समाज का भला नहीं हो सकता है। बेशक इनका जीवन सफर कितना भी संघर्षमय हो। हमारे पौराणिक या ऐतिहासिक पात्र चाहे वह काल्पनिक हो या वास्तविक इस विवाद में न फँसे तो उसे इस प्रकार गढ़ा गया है कि वे सच्चे आदर्श हो सकते हैं।
संघर्षगाथा में आप समाज के असली नायकों—नायिकाओं की जीवनी पढ़ेंगे। जो अपनी जिंदगी को संवारा है। जमीन से उठकर आसमान तक पहुँचा है। इसे अगर आप प्रतिदिन पढ़ेंगे तो निश्चय ही आपका शरीर प्रतिक्रिया करेगा। बशर्ते आप जिंदा हों। आपका प्रेरित होंगे कुछ करने के लिए। आप कुछ न कुछ अवश्य करने को ठान लेंगे। आप लक्ष्य बनायेंगे। आप उस लक्ष्य को भेदने के लिए उपाय भी ढूढ़ेंगे। एक दिन आप लक्ष्य प्राप्त करेंगे। बशर्ते आप खुद को रोज उत्प्रेरित करते रहें। इसके लिए आपका संगत सही होना जरूरी है। इन संघर्षशील लोगों का संगत कीजिये।
ज्ञातव्य हो, जीवनी या कहानियाँ केवल शिक्षण—प्रशिक्षण के उद्देश्य से बताया जा रहा है। किसी प्रकार के वाद—विवाद से कृपया दूर रहें। जीवनी या कहानियाँ मौलिक नहीं है सूचना—तंत्र में जो उपलब्ध है उसी को संपादित किया गया है। यह भी ध्यान में रखा जाये।
संघर्षगाथा के प्रथम अंक के रूप में भारतरत्न, भारतीय संविधान के जनक बाबा साहब भीमराव अंबेदकर की जीवनी पढ़े। उनकी जीवनी पहले से ही इस ब्लॉग पर उपलब्ध है जिसका लिंक नीचे दिया गया है।
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