फेसबुक पर मेरे लगभग 5000 मित्र हैं। इसमें मेरा कोई विशेष योगदान नहीं है। लेकिन मैं मानता हूँ कि उनमें से ज्यादातर मित्र जानकारी, समझ और ज्ञान मुझसे ज्यादा रखते हैं। कुछ तो अभिभावक तुल्य हैं। मैं उनका सम्मान करता हूँ। पहले मतभिन्नता आम बात हुआ करती थी। पर इनके साथ लोगों की आधारभूत समझ हुआ करता था। आज कई वरिष्ठ लोगों द्वारा लिखित, संपादित या अग्रसारित संदेशों और विचारों को पढ़कर ऐसा लगता है कि विचारों की परिपक्वता का अब उम्र और शिक्षा से कोई संबंध नहीं रहा। हिंदी में एक मुहावरा है, सब धान बाईस पसेरी। इसीलिए कुछ लोगों की अब हालत ऐसी हो गई है कि किसको सुनाये कौन सुनेगा, इसीलिए चुप रहते हैं।
एक ताजा उदाहरण देखिये, कुछ लोगों द्वारा धर्मनिरपेक्षता के नाम पर एक विषय को तुल दिया जा रहा है। जो वाकई बचकाना है। हलांकि यह कथन शत—प्रतिशत सच है कि अगर एक झूठ को हजार बार बोला जाये तो वह सच मान लिया जाता है। यहाँ हम हजार बार बोलने को तैयार हैं और बोलते भी हैं तो उसे सच कौन नहीं मानेगा? उक्त लेख में बताया जा रहा है कि मुस्लिम भारत में लूटने तो आये थे पर वे यहाँ लूट—खसोट नहीं किये । बल्कि यहीं बस गये। लूटने तो अंग्रेज आये थे। और वे लूटकर अकूत धन—संपत्ति भारत से ब्रिटेन ले गये। भारत सोने की चिड़िया हुआ करती थी। हमारे इतिहासकारों का भी यही कहना है। यह सच भी है। चलिये मान लेते हैं कि अंग्रेज भारत से सोने की चिड़िया को ब्रिटेन लेकर चला गया। फिर यह कल्पना कीजिये अंग्रेज भारत आया ही था लूटने के लिए।अंग्रेजों द्वारा किये गये सारे अत्याचार के सारे साधन जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पुल परिवहन इत्यादि को खतम कर देते हैं। तो हमारी सोने की चिड़िया फिर से उड़ने लगेगी। हमारे पुष्पक् विमान बिना जेट इंधन विश्व भ्रमण करायेगा। वैसे भी हम विश्वगुरू तो थे ही। कोई इतिहासकार जिसे मैं भाट या चारण से ज्यादा नहीं मानता, ये कहने की जहमत नहीं उठाता कि अगर अंग्रेज नहीं आते तो आज भी भारत के ज्यादातर लोग पिछवाड़े में झाड़ू बाँधकर कथक करते। हद तो तब हो जाती है जब वे लड़के जिनके बाप—दादाओं को घोड़ी पर बैठने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। वे भी कहते हैं अंग्रेज लूटकर चले गये। हलांकि गलती उनकी भी नहीं है। उनकी समझ तो उतनी है। पर वे गुणीजन जिनके बच्चे अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाईकर अमेरिका, इंगलैंड, कनाडा आदि देशों में डॉलर पीट रहे हैं। वे भी आजकल कहने लगे अंग्रेज लूटकर चले गये पर मुसलमान हमपर बहुत उपकार किया। लूटकर गये नहीं, यही बस गये। कृपा तो वे अब भी कर रहे हैं 2 से 16 प्रतिशत होकर। यह ऐसा ही दलील है जैसे एक नंगा व्यक्ति खुद का आँख मूँदकर अपनी नंगापन छिपाता है।
अंग्रेजों को भगाने का बीड़ा कांग्रेस ने उठाया था। हलांकि प्रत्यक्ष—अप्रत्यक्ष रूप से अन्य समूहों का भी योगदान था। अंग्रेजों के भारत छोड़ने से किसको फायदा हुआ? यह अगर किसी बुजुर्ग के पास अपने पूर्वजों का स्मृतिशेष हो तो वे आसानी से बता पायेंगें। ब्रिटिश हुकुमत में बाघ—बकरी एक घाट पर पानी पीते थे। कांग्रेसी ने कहा था— अंग्रेजो भारत छोड़ो। आज कांग्रेमुक्त भारत की कल्पना साकार हो रहा है। क्या अंतर है कांग्रेस या आज के शासक में? दोनों का उद्देश्य दूसरे को समाप्त करना था। मिट्टी पलीद भी करना था। यानि बदनाम भी उतना ही करना था। दोनों सफल रहे। कांग्रेस जो सोने की चिड़िया को लूटने का आरोप लगाते थे। आज वे 70 साल का हिसाब देने में मुँह बाये खड़ा रहता है। और निकलता तो सिर्फ हवा ही है। जैसे कलाकर द्वारा निर्मित पत्थर के मूर्त्ति को मंत्र द्वारा एक पंडित प्राण—प्रतिष्ठाकर भगवान बना देता है और सारा क्रेडिट ले लेता है, उसी प्रकार अंग्रेज द्वारा किये गये सारे आधारभूत संरचना पर अपना मुहर लगाकर कांग्रेस सारा क्रेडिट लेकर न केवल दशकों तक शासन किया बल्कि समानांतर में वे अंग्रेज को गरियाते भी रहे ताकि लोग उसे खलनायक ही समझते रहें। और जिस देश के जनता का उपरी मंजिल खाली ही पड़ा हो वहाँ इस तरह सफल होना कौन सी बड़ी बात है। हम तो जन्म जन्मांतर से ही कृतघ्न हैं। भीख माँगने के बहाने अपहरण तो हमारे यहाँ आम बात है। तो अंग्रेज किस खेत की मूली है। उसने किया ही क्या है? लूटकर ही तो गया है। दिया तो कुछ नहीं । देनेवाला तो कल तक कांग्रेसी ही थे। लेकिन अब दृश्य तो बदल चुका है। कहा भी गया है बोये पेड़ बबूल का आम कहां से होय। अब सबका बदला गिन—गिनकर लिया जा रहा है। बिगड़े वंश कबीर का उपजे पूत कमाल। अब कमाल जन्म लेकर जवान भी हो चुका है। क्योंकि उसके पास जबाव नहीं रहा कि वे बता सके कि कांग्रेस 70 सालों में किया क्या है, इसीलिए वे अब दूसरे पक्ष के पास जाना उचित समझा और सबाल अपने पुरखों से करना शुरू कर दिया। जो जीवित है उन्हें सरेआम गरियाते हैं और जो मृत है उसे वाया सोशल मीडिया। अब आने वाले समय में जैसे रहा न कोई रोबन हारा अंग्रेज का है, कल कांग्रेस का होगा। और हमारे इतिहासकार फिर से लिखेंगे, हलांकि कांग्रेस का शासनकाल बहुत लंबा चला लेकिन वे देश में कुछ नहीं किया। अंग्रेज सोने की अंडा देने वाली चिड़िया को तो लेकर चले गये थे पर चांदी की अंडा देने वाली चिड़िया छोड़ गये थे । पर नालायक कांग्रेसियों ने उस चिड़िया से अंडा नहीं ले सके। और लेते भी कैसे चिड़िया के दाना—पानी का तो इंतजाम कर नहीं सके। बेचारी चिड़िया बिना दाना—पानी के बेमौत मर गई।
यह परिपाटी अब फैल भी रही है। लोग इसे छोटे स्तर पर भी आजमा रहे हैं। मजे की बात यह है कि यह हर जगह फलदायक भी है। आप जहाँ चाहें वहाँ इसे आजमा सकते हैं । अगर आपको नायक बनना है तो आप नायक मत बनिये अपने प्रतियोगी को खलनायक घोषित कर दिजिये। लोग आपको खुद ब खुद नायक मान लेंगे। आखिर जनता इतना तो समझदार हैं ही।
अब शासन आपसे यह अपेक्षा भी करती है कि इसे आप बिल्कुल जमीनी स्तर पर लागू कर दें। ईश्वर ने चाहा तो आपको मनचाहा फल मिलेगा। और मिल भी रहा है। आज पिछड़ा लाठी में तेल पिलाकर दूसरे पिछड़े का पिछवाड़ा लाल कर रहा है। यह कहकर कि देखो किसी अगड़े ने तो तुम्हारा मुँह बंद करवा रखा था। एक अगड़ा दूसरे अगड़े को पश्त कर रहा है यह कहकर कि उसकी पराजय में पिछड़ों को मिला आरक्षण का हाथ है। हमारे नौनिहाल बीच में तुरही बजा रहे हैं। और गा भी रहे हैं,’अभी तो पार्टी शुरू हुई है’। परिणाम सामने है, जो आरक्षण कल तक देश के विकास में बाधक बना हुआ था, आज उनकी पैरवी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तक कर रहे हैं। समझ—समझ और वक्त—वक्त की बात है, कनक कभी धतूरा तो कभी सोना होता है। कनक और आरक्षण में समानता ही नहीं दोनों भाई—भाई है। कल तक देश में सामाजिक विकास आरक्षण के सहारे हो रहा था अब देश का आर्थिक विकास आरक्षण के सहारे से होगा। बस नुक्ता का हेरफेर है अब जुदा से खुदा होने में देर नहीं लगेगी। करोड़पति अगड़ा का बेटा जब आरक्षण के नये विकासशील वर्जन के साथ कोई पद ग्रहण करेंगे तो देश का विकास तो होगा ही। इसमें शक करने वाले देशद्रोही नहीं तो पागल तो घोषित तो किया ही जा सकता है। आरक्षण की एक और अवगुण है, जो सदियों से या दो—चार पीढ़ी से इस मलाई को चाभते आ रहे हैं, उनके लिए यह वेस्वादु हो जाता है। अब वे न तो इसे उगलना चाहते हैं न निगलना। साँप—छुछुन्दर की गति हो जाती है। अब जनता के लिए एक और खुशखबरी है कि जो लाठी में जितना ज्यादा तेल पिलायेगा वो आरक्षण का लाभ उतनी आसनी ले सकेगा। आखिर देश के आर्थिक विकास का सबाल है।