एक राजा को शहर के एक बनिया ने एक बाज भेंटस्वरूप दी। बाज गुणी था और वह राजा को आखेट में बड़ी मदद करता था। कुछ ही दिनों में वह राजा का प्रियपात्र बन गया। एक दिन वह बाज अचानक अपने पिंजड़े से उड़कर एक सुखे पेड़ की एक सूखी हुई डाल पर जा बैठा। ऐसा बैठा कि वह उड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। एक से एक उपाय किये गये बाज को उस डाल से उड़ाने के लिए, पर बाज था कि टस से मस ही नहीं हो रहा था। मंत्री —संतरी से लेकर शहर के बुद्धिमान पुरूष को भी बुलवाया गया, पर सब के सब असफल रहे। पक्षियों को पकड़ने वाले बहेलिया भी आया पर वह भी बेकार साबित हुआ। अंत में एक साधारण किसान आया। वह पेड़ पर चुपचाप चढ़ा। उसके हाथ में एक छोटी सी कुल्हाड़ी थी। उस कुल्हाड़ी से वह पेड़ की उस डाल को ही काट डाला। पेड़ की डाल कटते ही बाज उड़ गया और वापस अपने पिंजड़े में आ गया।
दोस्तों इस कहानी से सीख मिलती है कि जबतक हम कंफर्ट जोन (Comfort Zone) में रहते हैं तबतक हमसे कोई न कुछ करवा सकता है, न ही हम उससे निकलना चाहते हैं । कोई चाहकर भी उस कंफर्ट जोन से हमें नहीं निकाल सकता। उससे निकलने का एक ही तरीका है, उस कंफर्ट जोन को ही समाप्त किया जाए।
कंफर्ट जोन क्या है? कई लोग ज्ञान देते हैं संतोषम् परम् सुखम्, यानि संतोष में परम सुख है। हाँ है जबतक आपके पास सुख के वास्तविक साधन नहीं है तबतक संतोष ही सुख है। लेकिन कंगाली में परम सुख की सिर्फ कल्पना की जा सकती है। सुख का आनंद नहीं लिया जा सकता है। इसलिए अगर आपको लगता है कि आप किसी प्रकार के कंफर्ट जोन में हैं तो उसे तोड़िये, उससे बाहर निकलिये, और वास्तविक आनंद के लिए प्रयत्न किजिये।