द्वितीय अध्याय नीति :2.5 & 6
धोखेबाज मित्र को त्याग देना चाहिए
चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के पांचवे एवं छठे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं किएक विष भरे घड़े के उपर यदि थोड़ा सा दूध डाल दिया जाए तो वह विष का घड़ा ही कहा जायेगा। इसी प्रकार मुँह के सामने मीठी बाते करने वाला और पीछ पीछे काम बिगाड़नेवाला मित्र भी विष भरे घड़े के समान होता है। जिस प्रकार विष भरे घड़ा को कोई नहीं अपना सकता उसी प्रकार कपटी या छली मित्र को त्यागने में ही मानव की भलाई है। ऐसे मित्र को मित्र को मित्र नहीं दुश्मन ही समझना चाहिए।
वहीं आचार्य चाणक्य छठे नीति में कहते हैं कि मित्र अच्छा हो या बुरा यानि मित्र और कुमित्र दोनों पर भी कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। आशय यह है कि जो चुगलखोर या धोखेबाज मित्र है उस पर तो विश्वास भूलकर भी नहीं करना चाहिए, साथ ही साथ जो आपका लंगोटिया यार या विश्वसनीय मित्र है। उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए यानि उसे भी अपनी राज की बाते नहीं बताना चाहिए। हो सकता है कि किसी कारण वश मित्र नाराज हो जाए तो वह भेद न खोलने के बदले कुछ अनुचित कार्य की मांग करेगया या सबके सामने भेद खोलकर हानि पहुँचायेगा या धोखेबाज मित्र को त्यागना चाहिए एवं सच्चे मित्र को भी अपना राज यानि कोई गुप्त हो तो नहीं बताना चाहिए।