द्वितीय अध्याय नीति :2.8
पराधीनता
चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के आठवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्खता, यौवन और पराधीनता कष्ट है। मूर्ख व्यक्ति को सही—गलत का ज्ञान न होने के कारण हमेशा कष्ट उठाना पड़ता है। असल में मूर्ख होना अपने आप में अभिशाप है। जवानी बुराईयों की जड़ है। जवानी में व्यक्ति काम के आवेग में विवेकहीन एवं निर्लज्ज हो जाता है। जिसके कारण व्यक्ति को अनेक कष्ट उठाना पड़ता है। इन दुखों में सबसे बड़ा दुख है दूसरे के घर में रहने का दुख। दूसरे के घर में व्यक्ति न तो स्वाभिमान के साथ रह सकता है और न ही अपनी ईच्छा से कोई काम कर सकता है। कहा भी गया है — पराधीन सपनेहु सुख नाहीं।