द्वितीय अध्याय नीति :2.17 -18
दुनिया की रीति
चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के सतरहवें नीति में आचार्य चाणक्य प्रकृति का नियम बताते हैं। प्रकृति का नियम यह है कि पुरूष के निर्धन हो जाने पर वेश्या पुरूष को छोड़ देती है। प्रजा शक्तिहीन राजा यानि कमजोर राजा को और पक्षी फलहीन वृक्ष यानि बिना फल वाले वृक्ष को छोड़ देते हैं। इसी प्रकार भोजन कर लेने पर अतिथि भी घर को छोड़ देता है।
अठारहवें नीति में आचार्य कहते हैं कि दक्षिणा ले लेने पर ब्रह्मण यजमान को छोड़ देते हैं, विद्या प्राप्त कर लेने पर शिष्य गुरू को छोड़ देते हैं और वन में आग लग जाने पर पशु वन को त्याग देते हैं।