तृतीय अध्याय नीति :3–1
दोष कहाँ नहीं है?
चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अपनी कमियों को लेकर अधिक चिंता नहीं करनी चाहिए। बल्कि स्वयं के आचरण पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि किसके कुल में दोष नहीं होता? रोग किसको दुखी नहीं करते? दुख किसको नहीं मिलता और सदा सुखी कौन रहता है। यानि कुछ न कुछ कमी तो सब जगह है। जीवन की सच्चाई यही है।