तृतीय अध्याय नीति :3-7&8
मूर्ख एवं विद्याहीन व्यक्तियों का त्याग करें
चाणक्य नीति के तृतीय अध्याय के सातवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति मनुष्य होते हुए भी पशु ही है। जैसे पांव में चुभा हुआ कांटा दिखाई नहीं पड़ता है पर असहनीय दर्द देता है। इसी तरह मूर्ख व्यक्ति के शब्द दृदय में कांटा की तरह चुभता है। इसलिए मूर्ख व्यक्ति का त्याग करना चाहिए।
वहीं आठवीं नीति में आचार्य चाणकय कहते हैं कि रूप और यौवन से संपन्न,उच्च कुल में उत्पन्न होकर भी विद्याहीन मनुष्य सुगंधहीन फूल के समान होते हैं और शोभा नहीं देते। अत: विद्या ही व्यक्ति को वास्तव में योग्य एवं पूज्य व्यक्ति बनाती है।