चतुर्थ अध्याय नीति : 2-3
संतों की सेवा फलदायक होता है
चाणक्य नीति के चतुर्थ अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संसार के अधिकांश पुत्र, मित्र और भाई, साधु—महात्माओं और विद्वानों की संगति से दूर रहते हैं। परंतु जो लोग सच्चे ज्ञानी—महात्माओं के साथ रहते हैं, वे अपने कुल को पवित्र कर देते हैं।
वहीं तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मछली अपने बच्चों का पालन उन्हें बार—बार देखकर करती है। मादा कछुआ ध्यान लगाकर अपने बच्चों को देखती है और पक्षी अपने बच्चों को पंखों से ढ़ककर उनका लालन—पालन करती है। सज्जनों का साथ भी मनुष्य की इसी तरह देख—रेख करता है।