कर्म का प्रभाव

षष्ठम अध्याय नीति : 9 & 10

कर्म का प्रभाव

चाणक्य नीति के  षष्ठम अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य के स्वयं के कर्मों के आधार पर अच्छा या बुरा फल मिलता है। स्वयं संसार में भटकता है एवं स्वयं इससे मुक्त हो जाता है।

वहीं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राज्य द्वारा किये गये पाप को राजा भोगता है। राजा के पाप को पुरोहित भोगता है। पत्नी के पाप को पति भोगता है एवं शिष्य के पाप को गुरू भोगता है। इसलिए राजा, पुरोहित, पति एवं गुरू को चाहिए कि वे प्रजा, पत्नी अथवा शिष्य को अच्छे मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करें।

Author: Sanjay Kumar Nishad

बंधुओं मानव इस पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। जानकारी, बुद्धि और ज्ञान सिर्फ और सिर्फ मानव में ही समाहित हो सकता है। ईश्वर, परमात्मा या अल्लाह ने किसी अन्य जीव को इन्हें धारण करने योग्य नहीं बनाये हैं। बंधुओं कहा गया है कि अधिकार के साथ कर्तव्य का भी मेल होता है, पर लोग कर्तव्य को भूल जाते हैं। यही मानव के साथ भी है। प्राकृतिक संपदा का दोहन सिर्फ और सिर्फ मानव ही अपनी जानकारी, बुद्धि और ज्ञान के बल पर करते हैं। बदले में वापस कुछ भी तो नहीं करते हैं। फलत: इस असंतुलन का असर हम साफ—साफ प्राकृतिक आपदाओं के रूप में देखते हैं। पृथ्वी पर बाकी प्राणियों में जानकारी, बुद्धि और ज्ञान बहुम कम पाया जाता है। फिर भी वे सब खुश हैं। तो हमसे चूक कहाँ हुई? जबसे हम जानकारी, बुद्धि और ज्ञान को समान अर्थ में समझाने लगे, तबसे मानव में नैतिक मूल्यों का ह्रास होना शुरू हो गया। आज जानकारी प्रगति का पैमाना बन चुका है। यह जरूरी नहीं है कि जानकार व्यक्ति बुद्धिमान हो एवं यह भी जरूरी नहीं है कि जानकार एवं बुद्धिमान व्यक्ति ज्ञानवान हो। दस को सौ, सौ को हजार, हजार को लाख, लाख को करोड़ एवं करोड़ को अरब बनाने की जानकारी देनेवाले एवं बुद्धि तेज करने की तकनीक सिखानेवालों से हमारा संसार भरा पड़ा है, पर ज्ञान की कमी दिनोंदिन हो रही है। हलांकि सारे जानकार मानव ज्ञानी होने का दावा करते हैं। परंतु यह सच नहीं बल्कि धोखा है। आजकल अनपढ़ व्यक्ति के ज्ञानी होने की संभावना ज्यादा है। शिक्षित जिसने जरूरत से ज्यादा जानकारी हासिल की और बुद्धि को तेज किया, ज्ञान के मामले में बिल्कुल कंगाल साबित हो रहे हैं। जो पृथ्वी पर सारी विषमताओं का जड़ है। प्राकृतिक आपदाओं के समय हम मानवों के अमानवीय चरित्र बहुत आसानी से देख रहे हैं। अब प्रश्न उठता है इसका समाधान क्या है? लोगों में जानकारी और बुद्धि भरने के साथ—साथ ज्ञान भी भरने की व्यवस्था कीजिये। अभी भी समय है मानव और मानवता को बचाने का। मैं ज्ञानी होने का दंभ तो नहीं भर सकता पर उधार का ज्ञान आप तक पहुँचाने का प्रयास अवश्य कर सकता हूँ। आपसे अपेक्षा है कि मेरे इस प्रयास में आप भी सहभागी बनें। बाकी भविष्य तो हमेशा अलिखित एवं अनिर्णित होता है। धन्यवाद! आपका संजय कुमार निषाद

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