षष्ठम अध्याय नीति : 9 & 10
कर्म का प्रभाव
चाणक्य नीति के षष्ठम अघ्याय के नौवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य के स्वयं के कर्मों के आधार पर अच्छा या बुरा फल मिलता है। स्वयं संसार में भटकता है एवं स्वयं इससे मुक्त हो जाता है।
वहीं दसवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि राज्य द्वारा किये गये पाप को राजा भोगता है। राजा के पाप को पुरोहित भोगता है। पत्नी के पाप को पति भोगता है एवं शिष्य के पाप को गुरू भोगता है। इसलिए राजा, पुरोहित, पति एवं गुरू को चाहिए कि वे प्रजा, पत्नी अथवा शिष्य को अच्छे मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करें।