सप्तम अध्याय नीति : 1
मन की बात मन में रखना चाहिए
चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के प्रथम नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धन का नाश हो जाने पर, मन दुखी होने पर पत्नी के गलत चरित्र का पता लगने पर, नीच व्यक्ति से कुछ घटिया बातें सुन लेने पर तथा स्वयं कहीं से अपमानित होने पर अपने मन की बातों को किसी को नहीं बताना चाहिए। इसी में समझदारी है।