सप्तम अध्याय नीति : 2
लज्जा—संकोच कब नहीं करना चाहिए
चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी को धन उधार देते समय किसी से लेते समय या किसी से अपना पैसा या अनाज के लेन—देन में किसी प्रकार लज्जा—संकोच नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार विद्या ग्रहण करते समय यदि कोई बात समझ में न आये या भोजन करते समय या किसी प्रकार के बात व्यवहार में लज्जा या संकोच नहीं करना चाहिए। अत: आवश्यक है कि व्यक्ति को संकोच छोड़कर सदा सच्ची बात करनी चाहिए एवं व्यवहारिक मार्ग अपनाना चाहिए। पैसे के लेन—देन में हिसाब—किताब जरूरी है।