सप्तम अध्याय नीति : 3 & 4
संतोष सबसे बड़ा सुख है
चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि संतोष सबसे बड़ा सुख है। जो व्यक्ति संतोषी होता है उसे परम सुख एवं शांति की प्राप्ति होती है। धन की इच्छा लिए हुए इधर—उधर भटकने वालों को ऐसी सुख—शांति कभी नहीं मिलती है।
वहीं चौथी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अपनी स्त्री के रूप अथवा गुण को देखें बिना उससे संतोष करना चाहिए। समय पर जो भोजन मिल जाए उससे संतोष करना चाहिए। आजीविका से प्राप्त धन से भी संतोष करना चाहिए। इससे उसकी मन की शांति नष्ट नहीं होती है। इसके विपरीत शास्त्रों के अध्ययन, प्रभु के नाम स्मरण और दान—कार्य में कभी संतोष नहीं करना चाहिए। इससे मानसिक शांति एवं आत्मिक सुख मिलता है।