षष्ठम अध्याय नीति : 8
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चाणक्य नीति के षष्ठम अघ्याय के आठवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जन्म से अंधा व्यक्ति दुनिया की कोई भी वस्तु नहीं देख सकता। ठीक उसी प्रकार काम—वासना से वशीभूत व्यक्ति और नशे में पागल व्यक्ति को भी कुछ नहीं दीखता। स्वार्थी व्यक्ति भी किसी में कोई दोष नहीं देखता।