सप्तम अध्याय नीति : 18
विद्या बिना जीवन व्यर्थ है
चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के अठारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार कुत्ते की पूँछ से न तो उसके गुप्त अंग छिपते हैं और न वह मच्छरों को काटने से रोक सकती है। इसी प्रकार विद्याहीन व्यक्ति न तो अपनी रक्षा कर सकता है न अपना भरण—पोषण। वह न अपने परिवार की दरिद्रता को दूर कर सकता है और न ही शत्रुओं के अतिक्रमण को ही रोकने में समर्थ हो सकता है। अत: विद्या के बिना मनुष्य का जीवन व्यर्थ है।