अष्टम अध्याय नीति : 10
शुभ कर्म करें
चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के दसवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि देवता का वास न लकड़ी में है, न ही पत्थर में। देवता का निवास स्थान तो मनुष्य के हृदय में होता है, उसकी भावना में होता है। यदि भावना है तो मूर्ति साक्षत देवता है, अन्यथा वह साधारण लकड़ी—पत्थर के अलावा कुछ भी नहीं है। मूर्ति में देवता की प्रतिष्ठा का आधार भावना ही है। शुद्ध भावना से किये गये यज्ञ से ही मनुष्य को लाभ होता है। अत: श्रद्धा भाव से ही शुभ कर्मों का संपादन करना चाहिए।