अष्टम अध्याय नीति : 14
संतोष बड़ी चीज है
चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के चौदह नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है इसे यमराज के समान ही भयंकर समझना चाहिए। तृष्णा यानि ईच्छाएं वैतरणी नदी के समान है, इससे छूटना मुश्किल है। विद्या कामधेनु के समान सभी इच्छाओं को पूरा करनेवाली है। संतोष परम सुख प्रदान करनेवाले नंदन वन के समान है।