एकादश अध्याय नीति : 6—7
आदत नहीं बदलती
चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के छठी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट को चाहे कितना ही सिखाओ—पढ़ाओ उसे सज्जन नहीं बनाया जा सकता। क्योंकि नीम के पेड़ को चाहे जड़ से चोटी तक दूध और घी से सींच दो, तब भी उसमें मिठास नहीं आ सकती।
वहीं सातवीं नीति में आचार्य कहते हैं कि सुरा—शराब का बर्तन चाहे आग में जला दिया जाए, पर शुद्ध नहीं समझा जा सकता। इसी प्रकार जिस व्यक्ति का मन मैला हो उसे तीर्थ स्थान का कोई फल नहीं मिलता। पापी चाहे सैकड़ों तीर्थों में स्नान कर ले वह पापी ही रहता है।