एकादश अध्याय नीति : 17
दान की महिमा
चाणक्य नीति के एकादश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि महापुरूषों को अन्न—धन आदि का दान करते रहना चाहिए। इसका संचय करना उचित नहीं है। कर्ण,बलि आदि की कीर्ति आज तक बनी हुई है। मधुमक्खीयाँ अपने शहद को न तो स्वयं खाती है न किसी को देती है। जब कोई उस शहद को निकाल लेता है और मधुमक्खियाँ तब दुखी होकर पांवों को भूमि पर घसीटने लगती हैं।