चतुर्दश अध्याय नीति : 8
अहंकार
चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मानव को दान, तप, शूरता, विद्वता, सुशीलता और नीतिनिपुणता का कभी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस धरती पर एक से बढ़कर एक दानी, तपस्वी, शूरवीर और विद्वान व नीतिनिपुण आदि हैं। अत: किसी भी कार्यक्षेत्र में अपने को अति विशिष्ट नहीं मानना चाहिए। यह अहंकार ही मानव मात्र के दुख का कारण बनता है और उसे ले डूबता है।