सप्तदश अध्याय नीति : 3—4
तप की महिमा
चाणक्य नीति के सप्तदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि तप सबसे शक्तिशाली हैं जो दूर है, दुराध्य है, वह सब तप से साध्य है। यानि तपस्या या कठिन परिश्रम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
वहीं चौथी नीति में आचार्य कहते हैं कि लोभी व्यक्ति को दूसरे के अवगुणों या गुणों से कोई मतलब नहीं होता। वह अपने स्वार्थ को देखता है। चुगलखोर व्यक्ति पाप से नहीं डरता वह चुगली कर कोई भी पाप कर सकता है। सच्चे व्यक्ति को तपस्या करने की आवश्यकता नहीं होती। सच्चाई सबसे बड़ी तपस्या है। मन शुद्ध होने पर व्यक्ति को तीर्थों में जाने या न जाने से कोई मतलब नहीं रहता। यदि कोई समाज में प्रसिद्ध हो चुका हो तो उसे सजने—सँवरने की आवश्यकता नहीं होती। विद्वान को धन की आवश्यकता नहीं होती। क्योंकि विद्या सबसे बड़ा धन है। बदनामी अपने आप में मृत्यु है।