पंचदश अध्याय नीति :3
दुष्टों का उपचार
चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के तीसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दुष्ट और कांटे दोनों समान होते हैं। इन दोनों का दो ही उपचार है। जूतों से कुचल देना या दूर से ही छोड़ देना। दुष्ट से या तो किसी प्रकार का कोई मतलब ही नहीं रखना चाहिए, उससे दूर ही रहना चाहिए या फिर उसे ऐसा सबक सिखाना चाहिए कि वह दुबारा आपका अहित करने की हिम्मत ही न कर सके। परिस्थिति के अनुसार जो भी उपाय उचित लगे, उसे ही अपनाना चाहिए।