षष्ठदश अध्याय नीति : 17—19
मीठे बोल
चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के सतरहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मधुर बचन बोलना, दान के समान है। इससे सभी मनुष्यों को आनंद मिलता है। अत: बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। हमेशा मधुर ही बोलना चाहिए।
वहीं अठारहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि इस संसार रूपी वृक्ष के अमृत के समान दो फल है— सुंदर बोलना एवं सज्जनों की संगति करना।
उन्नीसवी नीति में आचार्य कहते हैं कि जन्म—जन्म तक अभ्यास करने पर ही मनुष्य को दान, अध्ययन और तप प्राप्त होते हैं।