द्वादश अध्याय नीति : 15-16
राम की महिमा
चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पंद्रहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि धर्म में तत्परता, मुख में मधुरता, दान में उत्साह मित्रों के साथ निष्कपटता, गुरू के प्रति विनम्रता, चित्त में गंभीरता, आचरण में पवित्रता, गुणों के प्रति आदर शास्त्रों का विशेष ज्ञान, रूप में सुंदरता तथा शिव में भक्ति ये सब गुण एक साथ राम में ही है।
वहीं सौलहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि कल्पवृक्ष लकड़ी है। सुमेरू पहाड़ है। पारस एक पत्थर है। सूर्य की किरणें तीव्र हैं। चंद्रमा घटता रहता है। समुद्र खारा है। कामदेव का शरीर नहीं है। बलि दैत्य है। कामधेनु पशु है। हे राम। मैं आपकी तुलना किसी से नहीं कर पा रहा हूँ। आपकी उपमा किससे दी जाए।