चतुर्दश अध्याय नीति: 18
वाणी से गुण झलक जाते हैं
चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के अठारहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कोयल वसंत आने तक चुप ही रहती है। वसंत आने पर उसकी वाणी फूट पड़ती है। यह वाणी सभी प्राणियों को आनंद देती है। आशय यह है कि जब भी बोलो मधुर बोलो। कड़वा बोलने से अच्छा है कि चुप रहो।