जीवन चलने का नाम है। आपने यह अवश्य सुना होगा। यहाँ चलने का मतलब प्रगति यानि विकास से है, न कि एक जगह से दूसरे जगह पर जाने से है। अगर हम जीवन के सभी क्षेत्रों में लगातार विकास नहीं करते हैं तो हमारा जीवन, मानव जीवन नहीं कहा जा सकता। भोजन, वंशवृद्धि और उम्र गुजार देना यह काम मानव और पशु में समान है। पशु सीमित चेतन और अवचेतन मन के साथ जीवन गुजारता है। पर मानव के पास असीमित मन होता है। इसलिए अविकसित मानव को मानव कहना उचित नहीं होगा।
हमारे पुराने ग्रंथों में भी दोपाया पशु का जिक्र है। जो इशारा करता है कि मानव हो हमेशा प्रगतिशील रहना चाहिए। प्रगतिशील मानव ही विकसित मानव है। अब सवाल उठता है कि आम आदमी अपने जीवन में लगातार प्रगति कैसे करे?
प्रिय दोस्तों, प्रगति के विभिन्न कारकों में से एक कारक हैं संगति। आप यह कहावत अवश्य सुने होगें— संगत से गुण होत है संगत से गुण जात। हमारे जीवन में संगति का महत्व सबसे उपर है।
बात सीधी है जैसा बनना है वैसे व्यक्ति का संगति कीजिए यानि दोस्ती कीजिए। आप एक जैसे लोगों का समूह जीवन के हर क्षेत्र में देख सकते हैं। यहाँ तक कि आप अपने पाँच दोस्तों के आमदानी का औसत निकालिए यह आपके आमदानी के बराबर होगा।
अगर आपको धनी बनना है तो धनी लोगों से संगति करना होगा। साथ ही धन से भी संगति करना होगा। अक्सर गरीब लोग धन—संपत्ति से दुश्मनी करते हैं यानि धनी लोगों के प्रति गरीबों का नजरिया बहुत अच्छा नहीं होता है। गरीब अक्सर धनिकों एवं धन की बुराई करते रहते हैं। धन की बुराई कर आप धनी नहीं बन सकते है।
कबीरदास जी ने कहा कि
कबीरा संगति साधु की, ज्यों गंधी की वास।
जो कुछ गंधी दे नहीं, तो भी बास सुभास।।
मतलब अगर आप साधु से संगति यानि दोस्ती करते हैं तो उससे प्रत्यक्ष रूप से कुछ प्राप्त नहीं होने पर भी आप बहुत कुछ पा लेंगे। जैसे गंधी या इत्र बेचनेवाला के पास अगर आप रहते हैं तो बिना उससे इत्र लिये ही आपका बदन सुगंध से भर जायेगा। जिस प्रकार अच्छा दोस्त से आपको लाभ होता है। इसके विपरीत यदि आपकी संगति सही नहीं है यानि कुसंगति से आपको नुकसान होगा। एक कहावत है एक सड़ा आम पूरी टोकरी के आम को सड़ा देता है। अत: दोस्त एवं संगति सोच—समझकर करनी चाहिए।