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आचरण

पंचदश अध्याय नीति : 8-9

आचरण

चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि भोजन वही है, जो ब्रह्मणों को खिला लेने के बाद बच जाये। प्रेम वही है जो दूसरों पर किया जाए। बुद्धि वही है जो पाप न करे। धर्म वही है जिसे करने में धमंड न हो।

वहीं नौवी नीति में आचार्य कहते हैं कि भले ही मणि पांव के आगे लोटती हो और कांच सिर पर रखा हो किंतु क्रय—विक्रय के समय कांच कांच ही होता है और मणि मणि ही होता है ।

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