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आसक्ति जहर है

द्वितीय अध्याय नीति :2.14

आसक्ति जहर है

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के चौदहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पत्नी से वियोग, अपनों से अपमान, ऋण का न चुका पाना, दुष्ट राजा की सेवा, दरिद्रता और धूर्त लोगों की सभा, ये सभी बिना अग्नि के ही शरीर को जला देते हैं। ये सब नहीं दिखने वाला आग है।

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