चाणक्य नीति प्रथम अध्याय, नीति:1.1
आचार्य चाणक्य का जन्म का नाम विष्णुगुप्त था और चणक नाम के आचार्य के पुत्र होने के कारण इनका नाम चाणक्य पड़ा। कुछ लोगों का कहना है कि अत्यंत तेज बुद्धि होने के कारण ही इनका नाम चाणक्य पड़ा। कुटिल राजनीतिज्ञ होने के कारण इन्हें कोटिल्य भी कहा गया। आचार्य चाणक्य मौर्य वंश के संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य के गुरू, महामंत्री, हितेषी एवं राज्य के संस्थापक भी थे। चंद्रगुप्त मौर्य को इन्होंने ही अपनी बुद्धि—कौशल से राजा बनाया था।
आचार्य चाणक्य द्वारा रचित चाणक्य नीति का मुख्य उद्देश्य आम जनता को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की व्यवहारिक शिक्षा देना है। इसमें जीवन जीने के नीतियों का अद्भुत संग्रह है। इन नीतियों को अपने जीवन में अमलकर मानव अपना जीवन आदर्श बना सकते हैं। चाणक्य नीति में कुल 17 अध्याय है। अब हम प्रत्येक नीति की बारी—बारी से ब्याख्या करेंगे।
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के प्रथम नीति में अपने इष्टदेव यानि तीन लोकों के मालिक भगवान विष्णु के चरणों में शीष झुकाकर प्रणाम कर कहते हैं कि अनेक शास्त्रों में वर्णित राजनीति के मोतियों का चाणक्य नीति में संकलन कर वर्णन करता हूँ।
असल में चाणक्य नीति राजा एवं प्रजा दोनों के लिए समान रूप से उपयोगी थी। अब भी है। राजा द्वारा निर्वहरण किया जानेवाला प्रजा के प्रति धर्म को राज—धर्म कहा गया है। प्रजा द्वारा राजा एवं राष्ट्र के प्रति पालन किये जाने वाले धर्म को प्रजा—धर्म कहा गया है।
दुनिया के अन्य धर्म—संप्रदाय में जिस प्रकार कोई भी शुभ कार्य ईश वंदना द्वारा ही आरंभ किया जाता है, उसी प्रकार आचार्य चाणक्य द्वारा भगवान विष्णु के वंदना से चाणक्य नीति का शुभारंभ किया गया है। मैं भी भगवान विष्णु से इस कार्य की सफलता के लिए प्रार्थना करता हूँ।