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उपदेश सुपात्र को ही देना चाहिए

दशम अध्याय नीति : 8—10

उपदेश सुपात्र को ही देना चाहिए

चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस व्यक्ति के भीतर समझने की शक्ति नहीं है, ऐसे व्यक्ति को उपदेश देने से कोई लाभ नहीं होता है। क्योंकि वे  बेचारे समझने की शक्ति नहीं होने के कारण, चाहते हुए भी कुछ नहीं समझ पाते। जैसे मलयाचल पर्वत पर उगने पर भी तथा चंदन के साथ रहने पर भी बांस सुगंधित नहीं होते हैं, वैसे ही विेवेकहीन मनुष्य पर भी सज्जनों के संग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

वहीं नौवें नीति में आचार्य कहते हैं कि जिस मनुष्य के पास शास्त्र को समझने की पर्याप्त बुद्धि नहीं है, उसका शास्त्र भला नहीं कर सकती, जैसे जन्म से अंधा व्यक्ति दर्पण में मुख नहीं देख सकता है। इसमें दर्पण को दोष नहीं दे सकते। शास्त्र अथवा शिक्षा भी उसी को लाभ पहुँचा सकती है जो अपनी बुद्धि के प्रयोग से उन्हें समझ सकें।

वहीं दशवी नीति में आचार्य कहते हैं कि मल का त्याग करने वाली इन्द्रिय को चाहे जितनी बार धोया जाय वह स्पर्श करने योग्य नहीं बन पाती है उसी प्रकार दुर्जन को सुधारने का प्रयास निरर्थक है, क्योंकि ऐसा कोई साधन नहीं है जिससे दुर्जन को सुधारा जा सके।

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