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उपदेश से करनी भली।

बच्चा जैसा किन्ही को अपने समाने करते देखता है, वैसा ही करता है।  विज्ञान के विषयों के शिक्षण से सैद्धांतिक अध्ययन के साथ—साथ प्रयोगिक अभ्यास भी कराया जाता है।  कारण प्रयोग के बिना हमारी ज्ञान अधूरी रह जाती हैं।  कोई उपदेशक अगर अपने उपदेश का पालन अपने जीवन में नहीं करता तो वह उपहास का पात्र बन जाता है।  बड़े—बड़े साधु—महात्मा या समाजसेवक सिर्फ उपेदश या मंच पर भाषण देकर महान नहीं बने बल्कि अपने विचारों पर खुद अमल कर लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किये, फलत: उनके अनुयायियों की संख्या दिन—प्रतिदिन बढ़ते गये।  महात्मा गॉधी और मदर टेरेसा का श्रेष्ठ उदाहरण हमारे सामने हैं महात्मा गॉधी अंग्रेजों के खिलाफ देश के प्रत्येक नागरिक को खड़े कर दिये।  सिर्फ मंच पर ओजस्वी , उत्साही भाषण देकर नहीं, बल्कि भीड़ के आगे—आगे खुद चलते रहे,प्रत्येक कार्य करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे।  मदर टेरेसा ने अपना जीवन गरीब, अपाहिज, अपंग समाज से निष्कासित अछुत कुष्ठ रोगियों की सेवा में अर्पित कर दिया।  सबों ने उन्हें मदर यानी मॉ की उपाधि दी , हृदय में बसाया।

आज स्थिति बिल्कुल विपरीत है, हर कोई अपना ज्ञान की शेखी बघारना चाहता है, राजनेता, समाजसेवक मंच पर भाषण देने के लिए उताबले रहते हैं।  अध्यापक एवं छात्र की परंपरा चल चुकी है।  गुरू— शिष्य की परंपरा समाप्त हो चुकी है।

वर्षों से प्रयत्न के बावजूद भी कमजोर समाज को देश के मुख्यधारा में नहीं जोड़ी जा सकी है।  कारण ऐसे समाज में पूर्ण कालिक समाजसेवक, समाजिक कार्यकर्ता का सर्वथा अभाव है।  अगर एक शिक्षित व्यक्ति एक अशिक्षित व्यक्ति को शिक्षित कर दे तो शिक्षितों की संख्या दोगुणी हो जायेगी।  तब समाज के विकास को कोई रोक नहीं सकेगा।

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