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गृहस्थ धर्म

द्वादश अध्याय नीति : 1

गृहस्थ धर्म

चाणक्य नीति के द्वादश अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस गृहस्थ के घर में उत्सव, यज्ञ, पाठ और कीर्तन आदि होता रहता है। संतान सुशिक्षित होती है। स्त्री मधुरभाषिणी, मीठा बोलनेवाली होती है। आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पर्याप्त धन होता है। पति—पत्नी एक दूसरे में अनुरक्त रहते हैं। सेवक स्वामीभक्त एवं आज्ञापालक होते हैं। अतिथि एवं मित्रों का भोजन आदि से सत्कार होता है। शिव का पूजन होता रहता है। महात्माओं का आना—जाना लगा रहता है। ऐसा व्यक्ति अत्यन्त सौभाग्यशाली एवं धन्य होता है।

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