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दुष्कर्मों से सचेत रहें

द्वितीय अध्याय नीति :2-19

दुष्कर्मों से सचेत रहें

चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के उन्नीसवें नीति में आचार्य चाणक्य कुसंगति से बचने के लिए कहते हैं कि दुराचारी, दुष्ट स्वभाववाला, बिना किसी कारण दूसरों को हानि पहुंचानेवाला तथा दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखनेवाला श्रेष्ठ पुरूष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

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