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धन ही सच्चा बंधु

पंचदश अध्याय नीति : 5-6

धन ही सच्चा बंधु

चाणक्य नीति के पंचदश अघ्याय के पाँचवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जब कभी धनहीन हो जाता है तब उसके मित्र, सेवक और संबंधी यहां तक कि स्त्री आदि भी उसे छोड़ देते हैं। जब उसके पास धन हो जाये तो यही सब वापस आ जाते हैं। इससे यह साबित होता है कि धन ही मनुष्य का सच्चा बंधु है।

वहीं छठी नीति में आचार्य कहते हैं कि चोरी, जुआ, अन्याय और धोखा देकर कमाया हुआ धन स्थिर नहीं रहता, वह बहुत शीघ्र नष्ट हो जाता है। अन्याय, धूर्तता अथवा बेईमानी से जोड़कर—कमाया धन अधिक—से—अधिक दस वर्षो तक रहता है। ग्यारहवें वर्ष में वह बढ़ा हुआ धन मूल के साथ ही नष्ट हो जाता है।

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