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धर्महीन मृत समान

त्रयोदश अध्याय नीति : 8-10

धर्महीन मृत समान

चाणक्य नीति के त्रयोदश अघ्याय के आठवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं— पहला जीते जी भी मरा हुआ मनुष्य। दूसरा मरकर भी लंबे समय तक जीवित रहने वाला। जीवन में कोई भी अच्छा काम न करनेवाला धर्महीन मनुष्य, जिंदा रहते हुए भी मरे के समान है। जो मनुष्य अपने जीवन में लोगों की भलाई करता है और धर्म संचय कर के मर जाता है, उसे लोग उसकी मृत्यु के बाद भी याद करते हैं।

वहीं नौवी नीति में आचार्य कहते हैं कि धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष में से जिस व्यक्ति को एक भी नहीं मिल पाता है, उसका जीवन बकरी के गले के स्तन के समान बेकार है। वहीं दसवी नीति में आचार्य कहते हैं कि दूसरे लोगों की उन्नति को देखकर दुष्ट व्यक्ति को बहुत दुख होता है। खुद उन्नति कर नहीं सकता, अत: वह उन्नति करनेवाले व्यक्ति की बुराई करने लगाता है। जैसे लोमड़ी अंगूरों तक नहीं पहुंच सकी तो कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं।

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