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नजरिया अपना—अपना

चतुर्दश अध्याय नीति :16

नजरिया अपना—अपना

चाणक्य नीति के चतुर्दश अघ्याय के सौलहवी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि किसी वस्तु को देखने का नजरिया प्रत्येक व्यक्ति का अपना—अपना होता है यानि अलग होता है। जैसे एक स्त्री को योगी एक बदबूदार मुर्दा समझता है और उससे घृणा करता है। रसिक यानि कामी पुरूष उसे ललचायी नजरों से देखता है और उसे भोग की वस्तु समझता है। परंतु कुत्ता उसे केवल मांस का लोथड़ा समझता है और खाना चाहता है।

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