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भावना में ही भगवान है

अष्टम अध्याय नीति : 11—12

भावना में ही भगवान है

चाणक्य नीति के अष्टम अघ्याय के ग्यारहवीं नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वैसे तो मूर्ति ईश्वर नहीं है फिर भी कोई सच्ची भावना से श्रद्धा के साथ लकड़ी पत्थर या किसी भी धातु की मूर्ति की ईश्वर के रूप में पूजा करता है तो भगवान उस पर अवश्य प्रसन्न होते हैं। उसे अवश्य सफलता मिलती है।

वहीं बारहवी नीति में आचार्य कहते हैं कि ईश्वर वास्तव में लकड़ी, मिट्टी आदि की मूर्तियों में नहीं है। यह व्यक्ति की भावना में रहता है। व्यक्ति की जैसी भावना होती है, वह ईश्वर को उसी रूप में देखता है। इसलिए यह भावना ही सारे संसार का आधार है।

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