द्वितीय अध्याय नीति :2.10,11,12
बच्चों के प्रति माता—पिता का कर्त्तव्य
चाणक्य नीति के द्वितीय अध्याय के दसवे नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि पिता का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है कि पुत्र को बेहतर शिक्षा दें केवल अकादमिक शिक्षा नहीं, उसे व्यवहारिक शिक्षा भी दें। अच्छे आचरण एवं व्यवहार की शिक्षा देना पिता का कर्त्तव्य है। गुणवान एवं अच्छे आचरण वाले पुत्र ही परिवार का नाम उँचा करते हैं।
ग्यारहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अपने बच्चों को न पढ़ाने वाली माता शत्रु एवं पिता दुश्मन के समान होते हैं। सुशिक्षित व्यक्ति के बीच में अशिक्षित व्यक्ति की वही दशा होती है जो दशा हंसों के बीच में कौए की होती है। धन ही नहीं शिक्षा भी व्यक्ति को आदरयोग्य बनाती है। अशिक्षित व्यक्ति को आचार्य चाणक्य बिना पूँछ और सींगवाले पशु की संज्ञा दी है। वास्तव में यह सच भी है।
बारहवें नीति में आचार्य चाणक्य बच्चों के परवरिश के बारे में बताते हैं कि अधिक लाड़—प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं। बच्चों से साथ सख्ती करने से वे सुधरते हैं। इसलिए माता—पिता एवं गुरू को चाहिए कि वे पुत्र या शिष्य के साथ अगर जरूरत हो तो सख्त बरताव करें ताकि बच्चे या शिष्य के आचरण एवं व्यवहार में सुधार हो सके।