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​विद्या सबसे बड़ा धन है

दशम अध्याय नीति : 1

​विद्या सबसे बड़ा धन है

चाणक्य नीति के दशम अघ्याय के पहली नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि विद्वान व्यक्ति यदि निर्धन हो तो भी उसे हीन नहीं समझना चाहिए बल्कि उसे श्रेष्ठ ही समझना चाहिए। विद्याहीन मनुष्य सभी गुणों से हीन ही कहा जाता है। चाहे वह धनी ही क्यों न हो, ​क्योंकि विद्या से व्यक्ति धन अर्जित कर सकता है। अत: व्यक्ति को चाहिए कि वह विद्या का उपार्जन करे, कोई गुण अथवा हुनर सीखे जिससे वह धन की प्राप्ति कर अपना जीवन सुखीपूर्वक निर्वहन कर सके।

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