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सत्कर्म में ही महानता है

सप्तम अध्याय नीति : 15

सत्कर्म में ही महानता है

चाणक्य नीति के सप्तम अघ्याय के पंद्रहवही नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि दान देने की आदतवाला, सबसे प्रिय बोलने वाला, देवताओं की पूजा करने वाला और ब्रह्मणों का सम्मान करने वाला व्यक्ति दिव्य आत्मा होता है। जिस व्यक्ति में ये चारों गुण पाये जाते हैं वह व्यक्ति इस लोक में स्वर्ग की आत्मा होता है।

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