प्रथम अध्याय नीति:1.16
सार को ग्रहण करें
चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के सौलहवें नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को अमृत, स्वर्ण, विद्या, गुण और स्त्री—रत्न को ग्रहण करने से कभी भी हिचकिचाना नहीं चाहिए। वह इनके ग्रहण करते समय गुण को महत्ता दें, स्रोत का नहीं अर्थात बुरे स्रोत से कोई उत्तम पदार्थ प्राप्त होता हो तो उसे प्राप्त करने में व्यक्ति को संकोच नहीं करना चाहिए । अमृत जीवनदायी है यह अगर विष में भी पड़ा हो तो ले लेना चाहिए। सोना यदि गंदगी में भी पड़ा हो तो उसे उठा लेना चाहिए। अच्छा ज्ञान या विद्या किसी नीच व्यक्ति से भी मिले तो उसे खुशी से ग्रहण कर लेना चाहिए। गुणवान, सुशील कन्या यदि दुष्टों के कुल में भी हो तो उससे विवाह कर लेना चाहिए।