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स्त्री का चरित्र

षष्ठदश अध्याय नीति : 2—4

स्त्री का चरित्र

चाणक्य नीति के षष्ठदश अघ्याय के दूसरी नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि स्त्रियां एक से बात करती है कटाक्ष से दूसरे को देखती है और मन से किसी तीसरे को चाहती है। उनका प्रेम किसी एक से नहीं होता।

वहीं तीसरी नीति में आचार्य कहते हैं कि जो मूर्ख पुरूष यह समझता है कि यह स्त्री उसपर रीझ गयी है। वह इस भ्रम में उस स्त्री के वश में हो जाता है और खिलौने की चिड़िया के समान नाचने लगता है।

वहीं चौथी नीति में आचार्य कहते हैं कि धन पाने पर सभी में घमंड हो जाता है। विषय—बुराईयों में फंसकर किसी के दुखों का फिर अंत नहीं होता। स्त्रियां सभी पुरूषों के मन को डिगा देती हैं। राजा का कोई व्यक्ति प्रिय नहीं हो सकता। मौत की आँखों से कोई नहीं बच सकता। भीख मांगने पर किसी को आदर नहीं मिलता। दुष्टों के साथ रहकर कोई सकुशल नहीं रह सकता।

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