दोस्तों सरकार एवं जनता दोनों चाहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार न हो और भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए प्रयास भी लगातार हो रहे हैं। लेकिन यह भ्रष्टाचार है कि सुरसा की मुँह की तरह बढ़ती ही जाती है। लोग त्रस्त हैं फिर भी भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार में व्यस्त हैं। हजार को लाख, लाख को करोड़ और करोड़ों को अरब बनाने में लोग नैतिक और अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। जो नैतिक तरीकों का इस्तेमाल कर अरबपति बन रहे हैं वे तो वास्तव में सम्मान के पात्र हैं। और वे Back to Society के तहत अपना योगदान समाज एवं देश की तरक्की के लिए तो दे ही रहे हैं। लेकिन ऐसे कार्यों में योगदान तो वे भी दे रहे हैं जो अनैतिक तरीकों से धन इकट्ठा किये हैं। उनपर यह कहावत एकदम चरितार्थ होती है, गाय मारकर जूते दान। स्विस बैंक को पोषित करने वाले ज्यादातर ऐसे भारतीय ही हैं। तो क्या वास्तव में भ्रष्टाचार उन्मूलन का कोई उपाय नहीं था या नहीं है? अगर उपाय है तो वह कितना आसान है या कितना मुश्किल है? आज इस विषय पर विचार करेंगे।
इस विषय पर विचार करें उसके पहले इससे संबंधित एक और मुद्दा है, जिसका भ्रष्टाचार से चोली—दामन का संबंध है। आप अपने वॉलेट चेक कीजिए। जी हाँ, अब रूपये पैसे से ज्यादा लोगों को कार्ड संभालकर रखना पड़ता है। और धीरे—धीरे कार्डों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। एक साधारण इंसान के पास कार्यालय/कंपनी के आई डी कार्ड, पैन कार्ड, आधार कार्ड, वोटर कार्ड, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, ड्राईविंग लाईसेंस, गाड़ी का पंजीकरण कार्ड एवं दो—चार ऐसे और कार्डस । जरा सोचिये जब एक व्यक्ति का आधार संख्या यूनिक है यानि एक व्यक्ति का दो आधार संख्या नहीं हो सकता है तो वोटर कार्ड अलग से जारी करना क्यों जरूरी है? बस एक दो डिटेल्स जैसे वार्ड संख्या ओर विधानसभा का नाम आधार में ही जोड़ दिया जाये तो यह क्या वोटर कार्ड से कम रहेगा, और इससे सरकार का या यूँ कहिये तो जनता के गाढ़ी कमाई के करोड़ों अरबों रूपये बच जाऐंगे। पैन कार्ड में क्या अलग से रहता है, पिता का नाम, पैन और हस्ताक्षर। ये तीनों भी आधार कार्ड में बड़ी आसानी से फिट हो सकता है। जब एक डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड से सभी बैंकों में ट्रांजेक्शन कर सकते हैं तो एक से अधिक कार्ड की आवश्यकता क्या है? अगर सिर्फ कंपीटिशन बढ़ाना है तो नंबर पोर्टिबिलिटी लागू कर दें। कंपीटिशन अपने आप बढ़ जायेगी। जब एक ही बैंक के खाता में लाखों करोड़ों जमा कर सकते हैं तो दस खाता क्यों? पाँच—दस लाख से ज्यादा की तो सरकार भी गारंटी नहीं देती।
पहले विचार करें कि अगर एक कार्ड से काम चला लें तो देश का कितना फायदा होगा? अगर एक व्यक्ति के पास दस सरकारी या गैर सरकारी कार्ड हैं तो उसे बनवाने में हजार रूपये से कम खर्च तो हुआ नहीं होगा। और सरकारी कार्ड बनवाने में तो एक—एक में हमारों खर्च हो जाते हैं।
वित्तरहित सारे खातों की सूचनाओं के लिए एक कार्ड का प्रयोग किया जा सकता है। अगर सारी सूचनाऐं एक कार्ड पर अंकित करना संभव नहीं हो तो कार्ड में ईलेक्ट्रॉनिक चिप फिट कर कुछ गौण सूचनाएं उसमें संरक्षित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में तो एक कार्ड में सारी सूचनाएं संरक्षित किया जा सकता है। यह बहुउपयोगी कार्ड की डाटा को पिन से सुरक्षित किया जा सकता है।
इस प्रकार एक कॉमन डाटाबेस सरकार को बनाना चाहिए। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि स्थानांतरण की स्थिति में किसी भी नागरिक को सभी अथॉरिटी के चक्कर अलग—अलग नहीं काटने पड़ेंगे। जैसे अगर किसी का पता में परिवर्तन करना हो तो एक ही अथॉरिटी उसके मास्टर डाटाबेस में परिवर्तन कर दें, जो सबके लिए मान्य हो। इससे जनता एवं सरकार के कार्यालयों का काफी बोझ कम हो सकेगा।
लोगों के पास एक दूसरा कार्ड हो जिसमें सारे चल—अचल संपत्ति का विवरण हो, एवं यह कार्ड बैंक के एटीएम कार्ड यानि डेबिट कार्ड के साथ क्रेडिट कार्ड का काम करे। दोनों कार्ड की कुछ जरूरी सूचनाएँ एवं अचल संपत्ति की सूचनाएँ एक ही मास्टर डाटाबेस में संरक्षित हो। सारी सूचनाओं का संरक्षण, निरक्षण, अद्यतन एवं वितरण सख्ती से हो, यानि फुलप्रूभ हो। अचल संपत्ति की खरीद—बिक्री बगैर इसे अद्यतन किये एवं नये विनिमय की पुष्टि इसमें हुए बगैर न हो। इससे कालाधन और बेनामी संपत्ति की संभावना नगण्य हो जायेगा। यह काम मुश्किल भी नहीं है। यह धन और संपत्तियों का एक तरह से ई—पासबुक का भी काम करेगा।
अगर ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार बहुत जल्द समाप्त हो सकता है। अन्यथा नोटबंदी की तरह सारे उपाय बेअसर सिद्ध होंगे।